कुछ साल पहले तक आदिवासी तीरंदाज लिम्बा राम को हर कोई जानता पहचानता था। उसकी तारीफों के कसीदे पढ़े जाते थे। इसलिए क्योंकि वह भारत का सर्वकालीन श्रेष्ठ तीरंदाज है और इस खेल को पहचान दिलाने में लिम्बा ने बड़ी भूमिका का निर्वाह किया है। लेकिन आज एक बीमार और अनुपयोगी नाम भर रह गया है।
लिम्बा एक ऐसी मानसिक और शारीरिक बीमारी का शिकार है जिसने उसे न सिर्फ दिल दिमाग से कमजोर कर दिया है बल्कि वह अब अपनी पहचान भी भूलने लगा है। इस दुख की घड़ी में जेनी नाम की एक महिला उसकी देखभाल कर रही है, उसके खान पान और दवा दारू का जुगाड़ भी वही करती है और जीने के लिए ढाढस भी बंधा रही है। लेकिन खुद को लिम्बा की पत्नी बताने वाली यह महिला कौन है और कहां से आई है, किसी को पता नहीं और ना ही वह इस बारे कुछ बताती है। बस बीमार और बिस्तर पर पड़े तीरंदाज की सेवा में लगी है।
सही मायने में जेनी ही है जोकि लिम्बा की निस्वार्थ सेवा कर रही है। कौन है , लिम्बा के करीब कैसे आई कोई नहीं जानता और न ही वह कुछ बताना चाहती है। लिम्बा के बैंक खातों का हिसाब किताब भी जेनी ही रखती है।
लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि जब तक देश का यह पूजनीय तीरंदाज सुर्खियों में था, ओलंम्पिक और एशियाड में जौहर दिखा रहा था तो इसके अपनों की लंबी कतार थी। इसके परिवार के लोग अक्सर नजर आते थे। प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा के तीरंदाजी अध्यक्ष रहते उसकी हर तरफ वाह वाह थी लेकिन आज उसे कोई पूछने वाला कोई नहीं। भारतीय खेल प्राधिकरण की कृपा उस पर बनी हुई है। सालों से नेहरू स्टेडियम में आश्रय मिला है। उसे मिलने मिलाने वाला कोई नहीं है।
जेनी बताती है कि जब कभी भूले बिसरे कोई परिजन और नाते रिश्तेदार मिलने आता है तो वह सबसे पहले लड़ता भिड़ता है, पैसे मांगता है और धमकियां देता है। कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि आखिर लिम्बा की सेवा कौन कर रहा है, उसे लेकर कौन हस्पतालों के चक्कर लगाता है और लम्बी कतारों में खड़ा होता है।
लिम्बा की उम्र पचास की है लेकिन पिछले कई सालों से गम्भीर बीमारी के चलते वह बेहद कमजोर हो गया है। चलना फिरना भी छूट गया है। खैर ,सरकारों और जिम्मेदार लोगों ने तो उसे कब का भुला दिया था। अब तो तीरंदाजी संघ भी उसे नहीं जानती। शायद उन्हें यह भी पता नहीं कि वह आज भी देश का श्रेष्ठ धनुर्धर है, जिसने कई अच्छे तीरंदाज भी पैदा किए। तीन ओलंम्पिक खेला और कुछ एक विश्व रिकार्ड भी बनाए। उसे यदि कोई जानता है तो दो चार गिने चुने पत्रकार जोकि कभी कभार उसे याद कर लेते हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |