भारत की महिला फुटबाल लाख कोशिशों के बावजूद भी कोई बड़ा नाम सम्मान अर्जित नहीं कर पाई है । ऐसा नहीं है कि खिलाड़ियों को किसी प्रकार से सुविधाओं और प्रोत्साहन की कमी रही हो लेकिन लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद भी स्तर गिरता चला गया। दूसरी तरफ महिला खिलाड़ी तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही हैं और पुरुषों की तुलना में उनका प्रदर्शन लगातार सुधर रहा है। ताजा उदाहरण महिलाओं की दिल्ली प्रीमियर लीग और दिल्ली महिला फुटबाल लीग के मुकाबले हैं, जिनमें देशभर की प्रतिभावान खिलाड़ी भाग ले रही हैं। घर से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर आकर इन लड़कियों का प्रदर्शन देख कर कोई भी वह वाह कर उठता है।
कुछ दिन पहले समाप्त हुई दिल्ली प्रीमियर पुरुष लीग का पहला संस्करण खासी चर्चामें रहा, जिसमें वाटिका एफसी ने ख़िताब जीता। अब महिला प्रीमियर लीग और महिला सीनियर डिवीज़न लीग के चर्चे आम हैं। दोनों ही महिला लीग आयोजन समाप्ति की ओर बढ़ चली हैं। विजेता का फैसला हो चुका है और आधिकारिक घोषणा होनी बाकी है। प्रीमियर लीग में हॉप्स एफसी और सीनियर डिवीज़न में अहबाब एफसी का चैंपियन बनना तय है। दोनों ही आयोजनों की खास बात यह है कि भाग लेने वाली सभी टीमों की अधिकांश खिलाड़ी दिल्ली से बाहर की हैं। दिल्ली के क्लबों में दूर दराज के प्रदेशों की लड़कियों की अधिकाधिक भागीदारी हैरान करने वाली जरूर है।
हॉप्स एफसी में अधिकांश लड़कियां हरियाणा की हैं , जिनकी ताकत और दमखम का कोई जवाब नहीं है। कुछ खिलाड़ी ऐसी हैं जिनका खेल देख कर कोई भी वाह वाह कर उठेगा। गढ़वाल एफसी, सिग्नेचर एफसी, हंस क्लब, रोयल रेंजर्स, रेंजर्स,
और सीनियर डिवीज़न लीग की विजेता अहबाब, दिल्ली एफसी, फ्रंटियर, सिटी एफसी और सुदेवा एफसी में कई लड़कियां विलक्षण प्रतिभा की धनी हैं।
सीनियर डिवीज़न लीग की विजेता अहबाब एफसी की लड़कियां हरियाणा , सिक्किम, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से हैं। सिटी की टीम बंगाल की खिलाड़ियों से सुसज्जित है तो फ्रंटियर में यूपी, हरियाणा आदि राज्यों की खिलाड़ी अधिकाधिक मात्रा में हैं। कुल मिलाकर देखें तो दिल्ली की फुटबाल में उसकी अपनी कही जाने वाली खिलाड़ी दस फीसदी भी नहीं हैं।
हालांकि भारतीय फुटबाल में अभी महिला खिलाड़ियों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा लेकिन इतना तय है कि उन्हें पुरुष खिलाड़ियों जैसा महत्व दिया जाए तो हमारी महिला टीम पुरुषों से पहले वर्ल्ड कप खेल सकती है। दिल्ली में क्लब फुटबाल खेलने वाली ज्यादातर लड़कियां बेहद गरीब घरों से हैं। क्लब अधिकारी उन्हेँ रहने खाने की सुविधा देते हैं। उन्हें थोड़ा बहुत जेब खर्च भी मिलता है। लेकिन बाकी का माल बिचौलिए खा जाते हैं।
यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो महिला फुटबाल में जल्दी ही बड़ा सुधार होने की
पूरी संभावना है। जरूरत बाहरी प्रदेशों से आकर अपने जौहर दिखाने वाली खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं देने की है और उनकी सुरक्षा और रख रखाव में जरा भी चूक नहीं होनी चाहिए।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |