खेल जगत में फुटबॉल और हॉकी की हैसियत तथा इन खेलों की लोकप्रियता किसी से नहीं छुपी है। एक खेलों का राजा माना जाता है तो दूसरें में भारत कभी बेताज बादशाह था लेकिन आलम यह है कि इन दोनों ही खेलों में भारत की लुटिया डूब रही है। यह हाल तब है जब दोनों ही खेलों में करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें हॉकी पर जमकर पैसा बहाती आ रही है, तो फुटबॉल में भी महंगे और मनचाहे प्रयोगों पर देशवासियों के खून-पसीने की कमाई लुटाई जा रही है।
साल 2024 की शुरुआत में ही दो बड़े खेलों में भारतीय प्रदर्शन की कलई खुल चुकी है। एएफसी एशियन कप फुटबॉल और महिला ओलम्पिक हॉकी क्वालिफायर में भारतीय प्रदर्शन इसलिए शर्मसार करने वाला है, क्योंकि देश के खेल आका, खेल मंत्रालय, खेल महासंघ और तमाम बड़े पदों पर बैठे खेलों के लुटेरे दावा कर रहे हैं कि भारत को ‘खेल महाशक्ति’ बनाना है। तो क्या ऐसे भारत खेलों में बड़ी ताकत बन पाएगा? आखिर क्यों देश के पैसे को लुटाया जा रहा है, यह सवाल हर खेल प्रेमी की जुबान पर है।
भले ही भारतीय हॉकी ने 1980 के मॉस्को ओलम्पिक के बाद ओलम्पिक गोल्ड नहीं जीता है लेकिन यह खेल आज भी खासा लोकप्रिय है और आम भारतीय की भावनाओं से जुड़ा है। जहां तक फुटबॉल की बात है तो पिछले साठ सालों में भारतीय फुटबॉल टीम ने कोई भी बड़ा खिताब नहीं जीता। दो बार एशियाई खेलों में विजेता रहे और ओलम्पिक भी खेले लेकिन आज महाद्वीप की शीर्ष 16 टीमों में भी स्थान नहीं बना पा रहे हैं।
फुटबॉल और हॉकी ही दो ऐसे टीम खेल रहे हैं, जिनमें भारतीय पहचान को मान्यता मिल पाई है। अन्य टीम खेलों में बड़ी कामयाबी नहीं मिली है। भले ही कुश्ती, बैडमिंटन, निशानेबाजी, एथलेटिक्स, वेटलिफ्टिंग, मुक्केबाजी आदि खेलों में हमारे खिलाड़ी बेहतर कर रहे हैं, लेकिन हॉकी और फुटबॉल आम भारतीय की जड़ों से जुड़े खेल हैं, जिनकी नाकामी राष्ट्रीय चिंतन का विषय है, क्योंकि हमारा लक्ष्य खेल महाशक्ति बनने का है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |