भारतीय महिला फुटबाल टीम फीफा अंडर 17 वर्ल्ड कप से बाहर हो गई है । लेकिन यह हैरान करने वाला परिणाम कदापि नहीं है । हैरानी यह देख कर होती है कि जब सालों पहले भारत को मेजबानी मिल गई थी तो पर्याप्त तैयारी क्यों नहीं की गई ? अपनी लड़कियों का खेल देख कर देश के फुटबाल प्रेमी पूछ रहे हैं कि जिस टीम पर देश के लाखों खर्च किए गए उसका प्रदर्शन इस कदर निराशजनक क्यों रहा ?
भारतीय टीम के कुल प्रदर्शन पर नज़र डालें तो अमेरिका से सात, मोरोक्को से तीन और अंततः ब्राजील से पांच गोल से हारने के साथ ही मेजबान का सफर समाप्त हो गया । ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि क्या भारत की मेजबानी को तीन मैचों में 16 गोल खाने के लिए याद किया जाएगा ? देखा जाए तो मेजबान टीम ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके लिए उसे याद किया जा सकता है । सच तो यह है कि भारतीय खिलाडियों का प्रदर्शन किसी भी कोण से सराहनीय कदापि नहीं रहा । गोलकीपर ने छोटे कद के बावजूद बड़ी हार टालने में सराहनीय रोल अदा किया वरना ब्राजील के विरुद्ध हार शर्मनाक हो सकती थी ।
भारतीय खिलाडियों के प्रदर्शन को कुछ शब्दों में बताएं तो अधिकांश समय मेजबान देश की लड़कियों ने अमेरिका, मोरोक्को और ब्राजील के हमलों को अपनी ‘डी’ में भीड़ जुटा कर टालने का प्रयास किया जिसमें बहुत कम सफलता मिली । किसी भी मैच में एक भी गोल नहीं जमा पाने का सीधा सा मतलब यह हुआ कि या तो हमारी खिलाडियों में गोल जमाने कि योग्यता नहीं थी या अपने गोल कि रक्षा करते करते वे गोल करना भूल गईं।
भारतीय फुटबाल की समझ रखने वाले और कुछ पूर्व खिलाडियों की मानें तो भारतीय फुटबाल फेडरेशन के पूर्व अधिकारियों ने अपनी शर्मनाक हरकतों को छिपाने और दबाने के लिए छोटे आयुवर्ग के आयोजनों की मेजबानी पर ज्यादा ध्यान दिया और देशवासियों के खून पसीने की कमाई को जमकर लुटाया । क्या उन्हें यह भी पता नहीं था कि शानदार मेजबानी के साथ साथ जानदार प्रदर्शन भी जरुरी है ? लेकिन अब तक आयुवर्ग के तीन वर्ल्ड कप आयोजित करने के बावजूद भी भारतीय टीम अपना गोल खाता तक नहीं खोल पाई हैं ।
दोष खिलाडियों का कदापि नहीं है । ज्यादातर लड़कियां गांव देहात के गरीब घरों से हैं और उनमें से अधिकांश ने शायद पांच छह साल पहले ही खेलना शुरू किया है , जबकि अमेरिका और ब्राज़ील की लड़कियां पांच छह साल की उम्र से खेल रही हैं । ज़ाहिर है हमारी खिलाडी तकनीकी रूप से बेहद कमजोर हैं और यही बहाना कोच थामस डेनेरबी ने बनाया है । कोच को अपनी खिलाडियों पर इसलिए गर्व है क्योंकि वे अंत तक डटी रहीं , भले ही सभी ग्यारह अपनी डी क्षेत्र में गोल बचा रही थीं और काफी हद तक कामयाब भी हुईं ।
कोच का यह बहाना दमदार है कि भारतीय लड़कियां तकनीकी रूप से सक्षम नहीं हैं। लेकिन आम भारतीय फुटबाल प्रेमी को लगता है कि बाकी गोरे कोचों की तरह थॉमस भी बहाने बना रहे हैं। सच्चाई यह है कि भारतीय फुटबॉल अभी वर्ल्ड लेबल की नहीं है । यह बात अलग है कि लगातार हारते रहने केबाद जीतना सीख जाएं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |