अहमदाबाद में 26 अप्रैल से खेले जाने वाले ‘हीरो इंडियन विमेंस लीग” में दिल्ली की चुनौती पेश करने वाली ‘हॉप्स एफसी'(HOPS FC) के मजबूत कन्धों पर देश की राजधानी की महिला फुटबाल का दारोमदार टिका है । दिल्ली साकर एसोसिएशन की पहली प्रीमियर लीग की विजेता होने के कारण हॉप्स को यह सम्मान मिला है। अर्थात दिल्ली की फुटबाल को गौरवान्वित करने का लक्ष्य लेकर हॉप्स मैदान में उतर रहा है, जहां उसका मुकाबला अन्य राज्यों के चैम्पियन क्लबों से होना है, जहां से 16 में से 8 क्लब देश की प्रीमियर लीग के लिए क्वालीफाई करेंगे।
हॉप्स अकादमी और क्लब के प्रमुख संजय यादव ने टीम की रवानगी से पहले एक साक्षात्कार में बताया कि उनकी वर्षों की मेहनत रंग दिखाना शुरू कर दिया है । गरीब मजदूरों और किसानों की बेटियों को फुटबाल से जोड़ने का उनका अभियान लगातार आगे बढ़ रहा है , जिसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि नज़फगढ़ स्थित उनकी अकादमी में लड़कों के साथ साथ लड़किया भी तेजी से आगे बढ़ रही हैं । छोटे से पीरियड में देश के 16 चैम्पियन क्लबों में शामिल होने का सीधा सा मतलब है कि हॉप्स भारतीय फुटबाल की होप पर खरा उतर रहा है ।
संजय के अनुसार उनकी अकादमी की सात लड़कियां राष्ट्रीय कलर पहन चुकी हैं । हाल ही में क्रिगिस्तान के विरुद्ध दो मैचों में दो गोल दागने वाली रेणू , अंडर 20 में अंशिका और संतोष तथा अंडर 17 वर्ल्ड कप की चार खिलाडी – नेहा , काजल , वर्षिका और शैलजा ने देश का प्रतिनिधित्व कर अपनी अकादमी और राज्य का नाम रोशन किया है । संजय के अनुसार उनकी अकादमी न सिर्फ स्तरीय खिलाडी तैयार कर रही है अपितु उनकी पढाई लिखाई , स्वास्थ्य , और जीवन यापन के लिए समुचित शिक्षा दीक्षा पर भी ध्यान दे रही है । इस कड़ी में लगभग 30 खिलाडी डी लाइसेन्स भी पा चुकी हैं ।
जिस किसी ने डीएसए प्रीमियर लीग में हॉप्स की खिलाडियों को खेलते देखा है उसका मानना है की हॉप्स की खिलाडी लड़कों पर भी भारी हैं । यही कारण है कि विजेता टीम ने गोलों की झड़ी लगाते हुए अन्य महिला क्लबों को अदना साबित किया और बिना किसी चुनौती के तमाम क्लबों ने उनके सामने हथियार डाल दिए । बेशक, हॉप्स की उपलब्धियों को देखते हुए दिल्ली देहात में महिला फुटबाल कल्चर तेजी से पनप रहा है , जिसका सबसे बड़ा फायदा गरीब और किसान परिवारों की जीवट महिला खिलाडियों को मिल रहा है ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |