राजधानी के शिवाजी स्टेडियम में हॉकी लौट आई है। लेकिन हॉकी प्रेमियों के लौटने की संभावना कम ही नजर आती है। इसलिए क्योंकि खिलाड़ियों और आयोजकों के अलावा हर किसी के लिए स्टेडियम के दरवाजे फिलहाल बंद हैं और तब तक नहीं खुलेंगे जब तक नई दिली नगर पालिका परिषद से स्वीकृति नहीं मिल जाती।
आयोजक सचिव कुक्कू वालिया के अनुसार कोविड 19 के चलते स्टेडियम के दरवाजे बंद कर दिए गए थे। इस बीच स्टेडियम को नव रूपता प्रदान की गई और अब शिवाजी स्टेडियम राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय आयोजनों के लिए सज संवर कर तैयार है। लेकिन हॉकी प्रेमी तब तक प्रवेश नहीं पा सकते जब तक एनडी एम सी से अनुमति नहीं मिल जाती।
हैरानी वाली बात यह है कि एक तरफ तो दिल्ली और अधिकांश महानगरों में स्कूल कालेज खुल रहे हैं। शादी व्याह और अन्य आयोजनों में एक निश्चित संख्या की उपस्थिति की अनुमति प्रदान कर दी गई है। लेकिन दिल्ली का दिल कहे जाने वाले शिवाजी स्टेडियम से हाकी प्रेमियों को दूर रखा जा रहा है। मीडिया को भी पूरी जांच पड़ताल के बाद ही बमुश्किल प्रवेश मिल पाता है। बिहार और उड़ीसा की स्कूली बालिकाओं के बीच खेले गए मैच का लुत्फ उठाने के लिए इस संवाददाता को भी खासी माथा पची के बाद अंदर जाने दिया गया।
स्टेडियम की नीली टर्फ पर उभरती चैंपियनों का खेल देख कर कोई भी वाह वाह कर उठे लेकिन गोलों की झड़ी लगाने वाली उड़िया बालिकाओं के खेल पर तालियां बजाने वाले मौजूद नहीं थे। सवाल यह पैदा होता है कि जब किसी को भी स्टेडियम में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा तो फिर खिलाड़ियों को कौन प्रोत्साहन देगा, कौन तालियां बजाएगा? दुर्भाग्यवश, यही हाल ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम का भी है। वहां भी सुरक्षा के लिए चौकस जवान हॉकी प्रेमियों को अंदर प्रवेश नहीं करने देते। स्टेडियम में सरकारी कार्यालय खोल दिए गए हैं, जिनमें प्रवेश कर पाना आसान नहीं है। यह हाल उन स्टेडियमों का है जिनमें कभी हॉकी के मेले लगते थे। दिल्ली का दिल कहा जाने वाला शिवाजी स्टेडियम कुछ साल पहले हॉकी के दीवानों से भरा रहता था। यहीं पर नेहरू हॉकी सोसाइटी द्वारा जूनियर, सब जूनियर बालक, बालिका,कालेज और नेहरू सीनियर टूर्नामेंट का आयोजन 1964 से किया जाता रहा है।
कुछ साल पहले तक शिवाजी स्टेडियम उभरते खिलाड़ियों और स्टार खिलाड़ियों का सबसे बड़ा प्लेटफार्म था लेकिन हाकी को संचालित करने वाली हॉकी इंडिया की मनमानी से अब ओलंपियन और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी खेलने नहीं आते। नतीजन हॉकी के चाहने वाले ढूंढे नहीं मिल पाते। बाकी की कसर कोरोना और अड़ियल सरकारी तंत्र ने पूरी कर दी है।
एक तरफ तो भारत को फिर से हॉकी महाशक्ति बनाने की डींग हाँकी जाती है तो दूसरी तरफ आलम यह है कि देश में हॉकी को बढ़ावा देने वाली सबसे बड़ी संस्था, नेहरू हॉकी सोसाइटी के प्रयासों को बाधित किया जा रहा है। बिना दर्शकों के खेल तमाशे का मायने समझ से परे है। बेहतर होगा आयोजक, प्रायोजक, हॉकी इंडिया और तमाम जिम्मेदार लोग गंभीरता दिखाएं और गलत फहमी से बचें। वरना वापसी कर रही हॉकी के लिए आगे की राह कठिन हो सकती है। भले ही हॉकी को उड़ीसा ने गोद ले लिया है लेकिन नेहरू हॉकी और शिवाजी स्टेडियम की गरिमा को बचाए रखने की जरूरत है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |