हॉकी: राष्ट्रीय खेल का कमजोर पड़ता दावा

hockey may not be our national game

देश को आज़ाद हुए 75 साल हो गए और गणतंत्र बने 73 साल लेकिन आज तक हमारे संविधान ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं दिया है।

गंदी राजनीति करने वाले और देश के मतदाताओं को गुमराह करने वाले भारत महान के नेताओं के पास इतना भी समय नहीं है कि किसी एक खेल को राष्ट्रीय खेल का स्थायी दर्जा प्रदान कर देते। लंबे समय तक हॉकी को यूं ही राष्ट्रीयखेल कहा जाता रहा लेकिन यह उस जमाने की बात है जब भारत को विश्व हॉकी में बड़ी ताकत माना जाता था। तब जबकि ओलंम्पिक खेलों में हमारी तूती बोलती थी।

टोक्यो ओलंम्पिक में 41 सालों के अंतराल के बाद भारत ने कांस्य पदक जीत कर वापसी का संकेत दिया तो हॉकी प्रेमियों में फिर से उत्साह लौट आया और हॉकी का कारोबार चलाने वाले आसमान में उड़ने लगे थे। लेकिन हाल के कुछ नतीजों ने आम भारतीय को बेहद निराश किया है। जूनियर खिलाड़ियों का फ्रांस के हाथों दो बार पराजित होना और सीनियरों पर जापान की जीत से यह पता चल गया है कि भारतीय हॉकी ने नहीं सुधरने की ठान ली है। महिला टीम ने टोक्यो ओलंम्पिक में चौथा स्थान जरूर पाया पर महिलाएं भी हारने की आदत से नहीं उबर पा रही हैं।

एशियन चैंपियनशिप में जापानी और कोरियाई लड़कियों ने उनका जैसा मान मर्दन किया उसे देख कर तो यही लगता है कि टोक्यो का प्रदर्शन महज तीर तुक्का था। हालांकि हॉकी के कर्ण धार कह रहे हैं कि भारतीय टीमें परिवर्तन और प्रयोग के दौर से गुजर रही हैं। लेकिन हल्की फुल्की टीमों से पिटना अच्छा संकेत नहीं है। यदि यही हाल रहा तो हॉकी कभी भी भारत का राष्ट्रीय खेल नहीं बन पाएगा।

सच तो यह है कि भारत में क्रिकेट , कुश्ती ,बैडमिंटन जैसे खेल बहुत आगे बढ़ चुके हैं और हाकी उसी रफ्तार से पीछे हट रही है। यह भी सच है कि अन्य खेलों की तुलना में हॉकी की लोकप्रियता भी लगातार घटी है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हॉकी को चलाने वाले इस खेल को पूरे राष्ट्र का खेल नहीं बना पा रहे। नतीजन हॉकी के अधिकाधिक चाहने वाले अन्य खेलों में रुचि लेने लगे हैं।

हॉकी से प्यार करने वालों को इस बात की नाराजगी है कि फेडरेशन और हॉकी इंडिया ने कभी भी उनके चहेते खेल को राष्ट्रीयखेल बनाने का प्रयास नहीं किया। उन्हें लगता है कि अब कोई संभावना भी नहीं बची है क्योंकि कभी देश का नंबर एक खेल अब प्राथमिकता वाले खेलों से बाहर हो चुका है। अब तो हॉकी को शायद भगवान भी नहीं बचा पाएंगे।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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