हॉकी पूरे देश की है, खिलाडियों को परदे में रखना ठीक नहीं

Hockey India should allow the players to take part in open tournaments

भारतीय हॉकी को गोद लेकर उड़ीसा सरकार ने बड़े ही पुण्य का काम किया है। अब उम्मीद की जा रही है कि क्रिकेट के बाद हॉकी भी भारत का पूर्ण स्वावलम्बी खेल बन जाएगा। हॉकी प्रेमी जानते हैं कि उड़ीसा सरकार पिछले कई सालों से देश के अघोषित राष्ट्रीय खेल पर खासी मेहरबान रही है । लेकिन टोक्यो ओलम्पिक में शानदार प्रदर्शन करने वाली पुरुष और महिला टीमों को पूर्ण सरंक्षण देने का मतलब यह हुआ कि अब हॉकी को केंद्र सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा |

लेकिन एक राज्य द्वारा दिए जा रहे सरंक्षण और सपोर्ट का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि पुरे देश की हॉकी एक राज्य की बपौती बन कर रह जाए। यह न भूलें कि यह खेल कभी पंजाब के आधिपत्य का खेल माना जाता था। वक्त के साथ साथ अन्य प्रदेशों ने भी प्रगति की और पिछले कुछ सालों में यह खेल पंजाब और हरियाणा से बाहर निकल कर देश भर में फैलता नजर आ रहा है। भले ही पंजाब के युवाओं पर नशाखोरी का आरोप लगाया जाए लेकिन टोक्यो ओलम्पिक में पंजाब के खिलाड़ियों कि संख्या 11 थी जिसका सीधा सा मतलब है कि पंजाब ने पुरुष हॉकी में फिर से तेज रफ़्तार पकड़ ली है जबकि महिला वर्ग में हरियाणा लगातार लीड कर रहा है ।

कुछ जाने माने पूर्व ओलम्पियन और अन्य खिलाडी राष्ट्रीय टीमों के प्रदर्शन से तो संतुष्ट हैं लेकिन उन्हें लगता है कि हॉकी इंडिया उतर भारत के आयोजकों और खिलाडियों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है, जिसके दूरगामी परिणाम गंभीर हो सकते हैं । खासकर, दिल्ली, पंजाब आदि प्रदेशों के आयोजकों के साथ हॉकी इंडिया का सुलूक ठीक नहीं लगता। पंजाब और दिल्ली के कई बड़े हॉकी टूर्नामेंट बमुश्किल चल रहे हैं तो देश में आयोजित किए जाने वाले कई टूर्नामेंट अंतिम सांसे गिन रहे हैं। इस दयनीय हालत को ले कर हॉकी प्रेमी बेहद नाराज हैं और ज्यादातर ने स्टेडियम का रुख करना छोड़ दिया है ।

उड़ीसा को हॉकी का हब बनाने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए की दिल्ली के शिवजी स्टेडियम में खेले जाने वाले नेहरू हॉकी टूर्नामेंट , शास्त्री हॉकी और महाराजा रणजीत सिंह हॉकी में कभी देश के स्टार खिलाडी भाग लेने आते थे। पिछले छह दशकों में इसी स्टेडियम में खेल कर युवा खिलाडियों ने राष्ट्रीय टीम में स्थान बनाया । उन्हें देखने और उनके खेल का रोमांच उठाने के लिए हॉकी प्रेमी बड़ी तादात में आते थे। अपने ओलम्पियनों और अंतर्राष्ट्रीय खिलाडियों की एक झलक देखने के लिए पूरे देश के हॉकी प्रेमी तरस रहे हैं । उन्हें या तो सालों साल कैम्प में रखा जाता है या विदेश दौरों में व्यस्त रहते हैं। शिवाजी और नेशनल स्टेडियम में खेले उन्हें वर्षों बीत चुके हैं।

अफ़सोस की बात यह है कि ओलम्पिक और विश्व चैम्पियन खिलाडी हर भारतवासी की पहुँच में थे लेकिन चार दशकों तक जिन खिलाड़ियों पर देश का पैसा बर्बाद किया गया उनके दर्शन भी दूभर हो गए हैं। टोक्यो ओलम्पिक में कांसा जीतने वाले खिलाडियों को देश के हॉकीप्रेमी देखना चाहते हैं उनको स्पर्श करना चाहते हैं लेकिन हॉकी के घमंडियों को देशवासियों कि भावनाओं से शायद कोई लेना देना नहीं है। यहाँ पर एक प्रदेश और एक शहर में हॉकी को प्रोमोट करने कि योजना फेल होती नजर आ रही है, ऐसा हॉकी के चाहने वाले मानते हैं| असंतुष्टों की राय में हॉकी पूरे देश की है, जिसे कैद करना या परदे में रखना न्यायसंगत नहीं है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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