अक्सर पूछा जाता है कि भारत कब फीफा वर्ल्ड कप में भाग लेगा? कब हम एशियाई खेलों में फिर से विजेता बनेंगे और कब भारत में रोनाल्डो और मेस्सी जैसे खिलाड़ी पैदा होंगे?
इन सवालों का सबसे कड़वा और अप्रिय जवाब यह है कि जब भारतीय खिलाड़ी फुटबाल को ढंग से पढ़ना और सलीके से पांव लगाना सीख जाएंगे तो देर से ही सही , कुछ एक स्तरीय खिलाड़ी पैदा हो सकते हैं। हालांकि भारत दो बार एशियाई खेलों का विजेता रहा है , ओलंपिक में भी दमदार प्रदर्शन कर चुका है । लेकिन वह जमाना और था। तब हमारे पास खेलने के लिए बाल नहीं थी, पहनने के लिए फुटबाल शू नहीं थे। तब हमारे खिलाड़ी चंदे से विदेश यात्राओं पर जाते थे और टाटा बिरलाओं के रहमों करम पर हवाई यात्राएं करते थे।
आज खासा बदलाव आया है। खिलाड़ी अच्छे से अच्छे जूते और यूनिफॉर्म पहन रहे हैं। बड़े स्तर पर लाखों और करोड़ों भी कमा रहे हैं। देश में सैकड़ों हजारों अकादमियां और क्लब हैं और सरकार भी छोटे बड़े स्तर पर फुटबाल पर करोड़ों खर्च कर रही है। पहले के मुकाबले हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भाग लेने जाते हैं तो उन्हें बेहतर यात्रा और रहने खाने की व्यवस्था मिलती है। तो फिर कमी कहां है? क्यों हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में अपनी चमक नहीं बिखेर पाते। क्यों हम इस धरती के सबसे कमजोर, दीन – हीन , गए – गुजरे, फिसड्डी और नालायक फुटबाल राष्ट्र बन कर रह जाते हैं?
जिन्हें फुटबाल से प्यार है, जो भारत को बड़ी फुटबाल ताकत के रूप में देखना चाहते हैं, जिनके नौनिहाल इस खेल में उतर चुके हैं और जो भारतीय फुटबाल का हित चाहते हैं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि भारतीय फुटबाल का तब तक भला नहीं होने वाला जब तक हम अपने बच्चों को छोटी उम्र से मैदान में नहीं उतारते, उन्हें अच्छे कोचों के हवाले नहीं करते और सबसे अहम बात यह है कि जब तक भारतीय फुटबाल और अन्य खेल उम्र की धोखाधड़ी जैसी कुआदतों को नहीं छोड़ते हम किसी भी खेल में आगे नहीं बढ़ सकते।
पिछले कुछ सालों में भारतीय फुटबाल को मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी और मिलीभगत का रोग लग गया है। फेडरेशन और उसकी राज्य इकाइयां सब कुछ जानते हुए अंजान बने हुए हैं। क्योंकि हमाम में नंगों की भरमार है इसलिए कोई भी कार्यवाही के लिए तैयार नहीं है।
फुटबाल फेडरेशन का खुद पर से भरोसा उठ गया है। उसे बस विदेशी कोच चाहिए , जोकि करोड़ों कमा कर और भारतीय फुटबाल को गालियां देते हुए लौट जाते हैं। कभी भारतीय फुटबाल में राष्ट्रीय टीम के सभी ग्यारह खिलाड़ी स्टार होते थे। आज हम भूटिया और क्षेत्री की माला जपते हैं और उम्मीद करते हैं कि हम विश्व कप खेलेंगे और हमारे मैदान पेले, माराडोना, रोनाल्डो, मेस्सी, नेमार, एंबापे जैसे महान खिलाड़ी तैयार करेंगे। आप ही बताइए क्या ऐसा संभव लगता है?
Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |