पिछले कुछ सालों में भारतीय फुटबॉल को सुधारने-संवारने के जितने भी प्रयास किए गए उनसे कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा। दिन पर दिन और साल दर साल हमारी फुटबॉल की हवा फुस्स होती जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल का कारोबार करने वालों की नीयत में खोट है। इस बारे में जब कुछ पूर्व खिलाड़ियों से बातचीत की गई तो ज्यादातर ने आज की प्रशिक्षण प्रणाली, कोचों के फर्जीवाड़े, औने-पौने में ‘डी’ से ‘ए’ लाइसेंस पाने की होड़ लगी है। जिसने कभी फुटबॉल पर पैर नहीं लगाया वह रैफरी, कोच बन रहा है और भविष्य के खिलाड़ियों को बर्बाद कर रहा है।
कुछ पूर्व चैंपियनों के अनुसार, आज खिलाड़ी स्पेन जैसी तकनीक से खेल रहे हैं जो कि खुद स्पेन , यूरोप और लैटिन अमेरिका के देश छोड़ चुके हैं । ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल सिखाने-पढ़ाने और फुटबॉल का कारोबार चलाने वाले ज्यादातर फर्जी हैं। पैसे दो और कोच बनो, पैसा खर्च करो और अकादमी खोल डालो और देश के उभरते खिलाड़ियों को गलत दिशा पर ले जाओ। कुछ पूर्व कोचों और बड़े नाम वाले खिलाड़ियों से बातचीत के बाद यह स्पष्ट हुआ कि ऐसे लोग फुटबॉल अकादमी चला रहे है, जिन्होंने या तो कभी अच्छी फुटबॉल नहीं खेली या फिर फुटबॉल मैदान के दर्शन भी नहीं किए। यही लुटेरे है, जो कि भारतीय फुटबॉल को बर्बाद कर रहे हैं। यही लोग हैं जो कि अधकचरे खिलाड़ियों को ‘ब्लू टाइगर्स’ बता रहे हैं।
चूंकि फुटबॉल के गोरखधंधे में फेडरेशन और उसकी सदस्य इकाइयों के लुटेरे भी शामिल हैं, इसलिए कमजोर और नकारा खिलाड़ी तैयार करने का ‘बिजनेस’ खूब फलफूल रहा है,” ऐसा मानना है कुछ पूर्व खिलाड़ियों का।
ज्यादातर पूर्व चैंपियन और फुटबॉल की गहरी समझ रखने वाले चाहते हैं कि हर गांव, गली-मोहल्ले, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चलाई जा रहीं फुटबॉल अकादमियों की जांच होनी चाहिए। अकादमियों के कचरा कोचों और लुटरे अकादमी मालिकों को जब तक आड़े हाथों नहीं लिया जाता भारतीय फुटबॉल अच्छे और हुनरमंद खिलाड़ियों के लिए तरसती रहेगी।
Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |