भारतीय फुटबाल बहुत रोई गिड़गिड़ाई और अंततः उसे एशियाई खेलों में भाग लेने के लिए हरी झंडी मिल गई है। शायद ही किसी को ऐसी उम्मीद रही होगी। ना सिर्फ पुरुष टीम को बल्कि महिला टीम को भी मन चाही मुराद मिली है। है। भारतीय फुटबाल प्रेमियों का उत्साहित होना और खुशी मनाना स्वाभाविक है। एक तरफ कई खेलों में घमासान मचा है। खिलाड़ी चयन प्रक्रिया और अधिकारियों व आईओए के रवैए से खफा हैं और कोर्ट कचहरी की शरण ले रहे हैं। ऐसे में फुटबाल टीम पर खेल मंत्रालय की दरिया दिली को हैरानी के साथ देखा जा रहा है।
कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार टीम को एशियाड में भेजना इसलिए सही है ताकि देश में फुटबाल के लिए माहौल बन सके। लेकिन कुछ आलोचक कह रहे हैं कि नियमों और परंपरा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। एक तरफ तो सरकार एशिया में आठवें नंबर तक की टीमों की भागीदारी का राग अलापती है तो दूसरी तरफ अपनी गाइड लाइन की ही धज्जी उड़ा रही है। यह गलत परंपरा अन्य खेलों को बढ़ावा दे सकती है, जिससे आईओए और खेल मंत्रालय उपहास का पात्र बन सकते हैं।
भारतीय पुरुष टीम की भागीदारी हाल के प्रदर्शन के आधार पर तय हुई है, ऐसा एआईएफएफ और उसके विदेशी कोच इगोर स्टीमैक का मानना है। लेकिन कुछ नाराज खेल और खिलाड़ी कह रहे हैं कि आईओए अध्यक्ष पीटी ऊषा की मनाही के बावजूद एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे का राजनीतिक दबदबा काम कर गया। लेकिन महिला टीम तो कहीं से भी भागीदारी के लिए प्रयासरत नहीं थी। लगे हाथ उसे भी हरी झंडी मिल गई है, हालांकि महिलाएं एशिया में 11वें और पुरुष टीम 18वें नंबर पर है । लेकिन यह सब कोच इगोर द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र और गृह मंत्री और खेल मंत्री की सहमति से संभव हुआ है।
अर्थात अब फुटबाल टीमों को खुद को साबित करना है। देश के सर्वाधिक लोकप्रिय ओलंपिक खेल में भारत की स्थिति आज भले ही दयनीय है लेकिन 1951और 1962के एशियाई खेलों के विजेता को वापसी के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। सवाल पदक जीतने का नहीं है। यदि सम्मान जनक प्रदर्शन कर पाए तो भी चलेगा। वरना आरोप प्रत्यारोपों की नई श्रृंखला शुरू हो सकती है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |