चार साल पहले जब केरल निवासी शाजी प्रभाकरण ने दिल्ली फुटबाल एसोसिएशन(डीएसए) के चुनाव में अध्यक्ष पद की दावेदारी पेश की तो बहुत से लोगों ने यह सवाल पूछा था कि क्या दिल्ली की फुटबाल में कोई काबिल अधिकारी नहीं बचा? आखिर शाजी के पास ऐसी कौनसी काबिलियत है, जिसे देख कर दिल्ली फुटबाल के तीन वरिष्ठ पदाधिकारी नरेंद्र भाटिया, हेम चंद और मगन सिंह पटवाल को लगा कि शाजी ही बेहतर पसंद हो सकते हैं?
खैर, शाजी प्रबल विरोध के बावजूद भी अध्यक्ष चुन लिए गए। इसमें दो राय नहीं कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद से दिल्ली की फुटबाल में बहुत कुछ बदला है। सबसे बड़ा बदलाव यह देखने को मिला है कि राजधानी की फुटबाल ने पेशेवर जामा ओढ़ लिया है। डीएसए का जो कार्यालय वर्षों तक अंबेडकर स्टेडियम के अस्त व्यस्त कमरे में चलता था उसकी जगह अत्याधुनिक आफिस ने ले ली है। भले ही डीएसए के समानंतर फुटबाल दिल्ली का गठन किया गया, जिसके अंतर्गत पेशेवर कर्मियों को नियुक्त किया गया है जोकि फुटबाल गतिविधियों पर करीबी नजर रखते हैं।
सबसे बड़ा बदलाव यह देखने को मिला है कि शाजी और उनकी टीम फुटबाल गतिविधियाँ चलाने के लिए बड़े प्रायोजक जुटाने में सफल रही है, जिनके सहयोग से पुरुषों की लीग फुटबॉल और महिला लीग का आयोजन बखूबी किया जा रहा है।
दो साल पहले सन्तोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप के मुख्य ड्रा के लिए क्वालीफाई करना बड़ी उपलब्धि रही है। लेकिन इस बार अपनी मेजबानी में मामूली अंतर से चूक गई। महिला फुटबाल में भी बदलाव देखने को मिला है। लगभग 20 कलबों ने अपनी महिला टीमों का गठन कर लिया है। महिला लीग में भी सुधार देखने को मिला है। खिलाड़ियों के अनुसार राष्ट्रीय चैंपियनशिप और अन्य आयोजनों में भाग लेने के लिए खिलाड़ियों को बेहतर यात्रा सुविधा और जेब खर्च मिल रहा है।
शाजी प्रभाकरण के अध्यक्ष रहते चंडीगढ़ की मिनर्वा फुटबाल अकादमी के खिलाड़ियों से गठित फुटबाल क्लब (दिल्लीएफसी) का चैंपियन बनना अलग तरह का प्रयोग रहा है। दिल्ली एफसी ने सीनियर डिवीजन लीग के साथ साथ राष्ट्रीय फुटसल खिताब जीत कर दिल्ली का नाम रोशन किया है। ऐसा इसलिए भी सम्भव हुआ है क्योंकि अध्यक्ष ने अपने किसी निहित स्वार्थ को फुटबाल पर हावी नहीं होने दिया और एक बेहतर टीम को हर सम्भव समर्थन दिया।
अधिकांश क्लब अधिकारियों के अनुसार पहली बार दिल्ली की फुटबाल को ऐसा शीर्ष अधिकारी मिला है जिसने फुटबाल की बेहतरी को प्राथमिकता दी है। हालांकि कुछ एक आलोचक भी हैं,जोकि शाजी पर मनमानी के आरोप लगाते हैं।
कोविड काल में भी खेल गतिविधियों को जारी रख पाना शानदार उपलब्धि कही जा सकती है। तारिफ की बात यह भी है कि अपनी पहुंच का फायदा उठा कर शाजी ने नेहरू और अंबेडकर स्टेडियम पर फुटबाल लीग मुकाबले आयोजित किए और अन्य गतिविधियों में व्यवधान नहीं पड़ने दिया। लेकिन फुटबाल लीग फुटबाल प्रेमियों को रिझाने में फिलहाल नाकाम रही है। अधिकांश क्लब आर्थिक मंदी के बुरे दौर से गुजर रहे हैं। इसलिए चूँकि उनके पास स्थानीय खिलाड़ी नहीं के बराबर हैं। इस ओर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |