फुटबॉल दिल्ली: नीयत में खोट और दोष मीडिया पर!

Football Delhi

राजेंद्र सजवान
इसमें दो राय नहीं है कि देश में मीडिया क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों की खबर नहीं ले रहा। खासकर, राज्य और राष्ट्रीय आयोजनों को प्रिंट मीडिया ने भाव देना छोड़ दिया है, जिसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं। मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी, मिलीभगत और टीमों के चयन में जमकर धांधली मची है और कहीं कोई कार्रवाई सुनने-देखने को नहीं मिलती। लेकिन सिर्फ मीडिया को दोष देना और भला-बुरा कहना भी ठीक नहीं है। सच्चाई यह है कि देश के बड़े-छोटे खेल महासंघ और उनकी राज्य इकाइयां मीडिया से खुद ही दूरी बनाना चाहते हैं, ताकि उनकी करतूतों की पोल ना खुल जाए।

दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल में यूरो लीग और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की खबरें जोर-शोर से छपती हैं लेकिन राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय आयोजनों को इसलिए जगह नहीं मिल पाती है, क्योंकि देश में फुटबॉल की खरीद फरोख्त और धांधली मचाने वाले मीडिया के करीब जाना ही नहीं चाहते हैं। दिल्ली सॉकर एसोसिएशन का उदाहरण सामने है। राष्ट्रीय आयोजनों में दिल्ली की टीमें शानदार प्रदर्शन कर रही हैं लेकिन फुटबॉल प्रेमियों को खबर तक नहीं लग पाती। टीम कब गई और कब लौटी, कौन कौन खिलाड़ी चुने गए और सिफारशी कितने थे किसी को पता नहीं चल पाता। चाहे संतोष ट्रॉफी हो, अंडर-20, अंडर-17, 15 या 14 के आयोजन ही क्यों ना हो खिलाड़ियों, कोचों, टीमों के साथ जाने वाले पदाधिकारियों के नाम मीडिया को नहीं भेजे जाते हैं क्योंकि पोल खुलने का डर रहता है।

डीएसए से जुड़े क्लब अधिकारी, आम अभिभावक और खिलाड़ी हैरान-परेशान हैं। वे मीडिया को दोष देते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए चुने जाने वाले खिलाड़ियों के नाम डीएसए द्वारा गुप्त रखे जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि चोर दरवाजे से चयन समिति के अवसरवादी अपने लाडले – लाडलियों का चयन करा सकें। आरोप लगाया जाता रहा है कि खरीद फरोख्त से खिलाड़ियों को चुना जाता है । यह भी सर्वविदित है कि डीएसए गुटबाजी की शिकार है। प्रतिद्वंद्वी गुट कहता है कि चार-छह कार्यकारिणी सदस्य पुरुष और महिला टीमों के चयन से जुड़े हैं। टीम में कौन-कौन खिलाड़ी है, किसी को कानों-कान खबर नहीं लगती है। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ समय से सब कुछ गुपचुप हो रहा है। आरोप लगाया जाता है कि चयन समिति में वही चिर परिचित चेहरे नजर आते हैं जिन्होंने शायद ही कभी फुटबाल खेली हो। उनकी करतूतों का पर्दाफाश न हो इसीलिए मीडिया से दूरी बनाई जाती है। लेकिन यह धांधली सिर्फ दिल्ली में नहीं हो रही। पूरे देश की फुटबाल इकाइयां यह पाप कर रही हैं। यही कारण है कि भारतीय फुटबाल तिल तिल कर मर रही है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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