फुटबॉल बचेगी या गुटबाजी की भेंट चढ़ेगी?

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दिल्ली की फुटबॉल वर्षों बाद एक बार फिर दो राहे पर आ खड़ी हुई है। यूं भी कहा जा सकता है कि ऐसे चौराहे पर आ खड़ी है, जहां से सभी रास्ते गर्त में जाते हैं। सत्तर-अस्सी के दशक में राजधानी की फुटबॉल को संचालित करने वाले डीएसए को कुछ इसी प्रकार की समस्या से दो-चार होना पड़ा था। हालात इतने खराब हो गए थे कि डीएसए दो गुटों में बंट गई थी और दो अलग-अलग लीग और अन्य गतिविधियों का आयोजन किया गया था।
तब सत्ता की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान खिलाड़ियों का हुआ था। ज्यादातर गतिविधियां लगभग ठप पड़ गई थीं। इतना ही नहीं, संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप और अन्य आयोजन में दिल्ली की दो-दो टीमों ने अपने-अपने दावे पेश किए। हालांकि गुटबाजों और खेमेबाजों को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन ग्रोवर, बुंदू मियां, केएम दत्ता, अजीज, उमेश सूद, नासिर अली, वीएस चौहान जैसे दूरदर्शी और योग्य प्रशासकों ने जैसे-तैसे स्थानीय फुटबॉल को बचा लिया और सालों बाद दिल्ली की फुटबॉल की रौनक लौट आई। लेकिन एक बार फिर से बुरा वक्त सामने आ खड़ा हुआ है। फिर से डीएसए की अंतर्कलह सड़क पर आ गई है। पूर्व डीएसए अध्यक्ष शाजी प्रभाकरण के फुटबॉल फेडरेशन का महासचिव पद पर आसीन होने के बाद अनुज गुप्ता को डीएसए अध्यक्ष बनाया गया था। शाजी को एआईएफएफ ने अपदस्थ कर दिया और अब कुछ इसी प्रकार की सुगबुगाहट अनुज के बारे में भी सुनाई पड़ रही है। उसे पद से हटाने के लिए मोर्चेबंदी शुरू हो गई है और 22 सितम्बर को बुलाई गई एजीएम में ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। अनुज जाएंगे या रहेंगे, फैसला डीएसए की सदस्य इकाइयों को करना है। मामला बकायदा कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गया है और कोर्ट के आदेशानुसार ही अनुज को बहुमत साबित करना है।
डीएसए में मचा हड़कंप फुटबॉल के लिए चिंता का विषय है। फिलहाल गुटबाजी जोरों पर है। एक गुट कह रहा है कि अनुज के इर्द-गिर्द अवसरवादियों का जमावड़ा है तो दूसरा आरोप लगा रहा है कि दिल्ली की फुटबॉल फिक्सरों और सट्टेबाजों के इशारे पर चल रही है और गलत ट्रैक पर चलने वाले ऐसे लोगों को लीड कर रहे है। कुछ कहते हैं कि अनुज के अध्यक्ष बनने के बाद स्थानीय फुटबॉल ने चौतरफा प्रगति की है, गतिविधियां चल रही हैं और राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली का कद ऊंचा हुआ है तो दूसरा अपने अपनों को रेवड़ियां बांटने का आरोप लगा रहा है। देखना होगा कि 22 सितंबर को अनुज रहेंगे या जाएंगे ! फुटबाल चलेगी या फुस्स होगी!

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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