दिल्ली की महिला फुटबाल की प्रगति की रफ्तार पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में लड़कियां तेज रफ्तार से दौड़ रही हैं। प्रीमियर फुटबाल लीग , सीनियर डिवीजन, ए और बी डिवीजन और तमाम महिला फुटबाल आयोजनों में भाग लेने वाली खिलाड़ियों को देख कर लगता है कि दिल्ली के क्लब जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और महिला फुटबाल में देश परिपक्व होने जा रहा है। भले ही भारतीय पुरुष फुटबाल लगातार अपयश कमा रही है , पिट रही है लेकिन महिला फुटबाल से इसलिए कोई शिकायत नहीं क्योंकि महिलाओं को लंबे इंतजार के बाद मौका नसीब हुआ है, जिसका भरपूर फायदा उठा रही हैं।
जहां तक दिल्ली की महिला फुटबाल की बात है तो देश की राजधानी की फुटबाल की तरक्की का श्रेय दिल्ली की लड़कियों को कदापि नहीं जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली के पास अपने कहने लायक खिलाड़ी बहुत कम हैं या बिलकुल भी नहीं हैं। पिछली प्रीमियर लीग की चैंपियन हॉप्स एफसी को हो देखें । यह क्लब हरियाणवी बेटियों के दम पर खड़ा है। उस प्रदेश की मेहरबानी पर जिसकी लड़कियां हर खेल में धमाल मचा रही हैं।
पिछले कुछ सालों में उस राज्य ने अपनी अलग अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है, जिसमें कभी छोरियों का पैदा होना अभिशाप माना जाता था। कुश्ती, हॉकी, मार्शल आर्ट्स खेलों, कबड्डी और अब फुटबाल सहित तमाम खेलों में हरियाणा छा गया है। महिला फुटबाल में दिल्ली के ज्यादातर पेशेवर क्लब भी हरियाणा पर निर्भर हैं। हॉप्स एफसी में लगभग सभी खिलाड़ी हरियाणा की हैं। ईवस, रेंजर्स, सिग्नेचर, हंस, रॉयल रेंजर्स, सुदेवा , फ्रंटियर, ग्रोइंग स्टार आदि। क्लबों की पहली पसंद भी हरियाणा की खिलाड़ी हैं।
हरियाणा के अलावा स्थानीय फुटबाल में मणिपुर, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, यूपी, असम आदि प्रदेशों की लड़किया भी स्थानीय प्रतिभाओं पर भारी पड़ रही हैं।
दिल्ली की फुटबाल का एक दुखद पहलू यह है कि हरियाणा और अन्य राज्यों की दर्जनों खिलाड़ी दिल्ली राज्य के लिए नहीं खेल पातीं। सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में इन खिलाड़ियों की भागीदारी कहीं नजर नहीं आती। ऐसा इसलिए क्योंकि वे किन्ही कारणों से दिल्ली की बजाए अपने राज्य से खेलना ज्यादा पसंद करती हैं या यह भी हो सकता है कि दिल्ली फुटबाल की लचर चयन प्रक्रिया के चलते वे पहले ही हथियार डाल देती हैं। कुछ खिलाड़ियों के अनुसार दिल्ली में अन्य राज्यों की तरह टीमों के चयन में धांधली होती है। राज्य एसोसिएशन, कोच और चयनकर्ता प्रतिभाओं की बजाय अपने बेटे बेटियों को प्राथमिकता देते हैं। नतीजन मजबूत टीम का गठन नहीं हो पाता।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |