देश की राजधानी दिल्ली को भारत की फुटबाल राजधानी बनाने का सपना देखने दिखाने वालों की संख्या भले ही ज्यादा न हो लेकिन कुछ एक क्लब अधिकारी और फुटबाल प्रेमी यह मानते हैं कि देश की राजधानी की फुटबाल सही दिशा में बढ़ रही है।
सालों बाद ही सही स्थानीय क्लबों और खिलाड़ियों के लिए दिल्ली फुटबाल लीग में खेलने के अवसर बढ़ रहे हैं। खासकर , छोटी आयुवर्ग के खिलाड़ियों के लिए किसी सपने के पूरा होने जैसा है। बेबी लीग और सी डिवीजन से लेकर प्रीमियर लीग तक आयोजन हो रहे हैं और खिलाड़ियों को साल भर खेलने का मौका मिल रहा है। जाहिर है खिलाड़ी थोड़ा बहुत जेब खर्च भी पा रहे हैं। भले ही उन्हें भरण पोषण लायक नहीं मिल पाता लेकिन दिल्ली लीग फुटबाल उनके लिए आई लीग, आई एस एल और राष्ट्रीय टीम में स्थान बनाने का बेहतर प्लेटफार्म हो सकता है। फिरभी एक सवाल बार बार पूछा जाता है कि दिल्ली की फुटबाल में दिल्ली के अपने खिलाड़ी कितने हैं?
पांच से छह वर्गों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों पर सरसरी नजर डालें तो मेजबान राज्य के खिलाड़ियों की तादात लगातार घट रही है? ऐसा क्यों हो रहा है, इसका जवाब खुद दिल्ली के क्लबों के पास नहीं है या अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए सही जवाब से आंख फेर लेते हैं। बड़े क्लब और स्थानीय इकाई के अधिकारी भी कुछ स्पष्ट नहीं बोलना चाहते।
यह सच है कि दिल्ली की फुटबाल में बाहरी खिलाड़ियों के लिए दरवाजे हमेशा से खुले रहे हैं। अधिकांश बड़े क्लबों में अन्य प्रदेशों के खिलाड़ी खेलते आ रहे हैं लेकिन आज बहुत कुछ बदल गया है। पहले बाहरी प्रदेशों के खिलाड़ी उंगलियों पर गिने जाने की संख्या में थे लेकिन आज हालत यह है कि दिल्ली के अपने कहे जाने वाले खिलाड़ियों की संख्या नहीं के बराबर रह गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि बाहरी प्रदेशों से आने वाले खिलाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
बाहर के खिलाड़ियों के दम पर टिके स्थानीय क्लबों के अनुसार दिल्ली में लगातार स्तरीय खिलाड़ियों की कमी हुई है। चूंकि प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है इसलिए बाहरी खिलाड़ियों की अधिकाधिक भर्ती की जा रही है। पड़ोसी राज्य हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, अरुणाचल, असम और अन्य कई प्रदेशों के खिलाड़ी स्थानीय क्लबों से खेल रहे हैं और खूब धमाल मचा रहे हैं। तारीफ की बात यह है जिन टीमों में अधिकाधिक बाहरी खिलाड़ी हैं उनकी जीत पक्की मानी जा रही है । इतना ही नहीं अधिकांश मैन आफ मैच भी बाहरी खिलाड़ी बन रहे हैं। बाहरी खिलाड़ियों की बढ़ती तादात को जहां एक ओर खेल के स्तर में सुधार के नजरिए से देखा जा रहा है तो कुछ स्थानीय क्लब और खिलाड़ी खौफजदा हैं। इसलिए क्योंकि उन्हें दाल में काला नजर आता है।
कुछ अधिकारियों ने अपना नाम न छापने की शर्त पर संदेह व्यक्त किया कि बाहर से आए कुछ खिलाड़ी अपना स्वाभाविक खेल नहीं खेल पा रहे। उनकी डोर कुछ ऐसे लोग थामे हैं , जिनका मकसद खेल बिगाड़ने का है।
बेशक, यह गंभीर चिंता का विषय है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |