कुछ दिन पहले हॉकी वर्ल्ड कप में नौवें पायेदान पर लुढ़की भारतीय हॉकी टीम ने एफआईएच प्रो लीग के दूसरे चरण में जैसा धमाकेदार प्रदर्शन किया उसे देखकर आम भारतीय हॉकी प्रेमी का आनंदित और गौरवान्वित होना स्वाभाविक है । जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध जीत दर्ज करना हंसी खेल नहीं है । दोनों ही देश हॉकी में ऊँचे मुकाम पर हैं और पिछले कई सालों से दबदबा बनाए हुए हैं ।
जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया का हल्का प्रदर्शन हैरान करने वाला नहीं है । हैरानी इस बात की है कि मेजबान देश के खिलाडियों को ऐसा कौनसा जादुई चिराग मिल गया है कि उनकी जीत का सिलसिल रोके नहीं रुक पाया। इस बारे में कुछ पूर्व ओलम्पियनों से बात हुई तो अधिकांश की राय में ऐसा हमेशा से होता आया है और कुछ भी नया नहीं है । उनका मानना है कि जर्मनी ,ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम , इंग्लैण्ड , अर्जेंटीना आदि देश अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन तब करते हैं जब उनके सामने ओलम्पिक या विश्व चैम्पियन जैसे लक्ष्य होते हैं । इसी प्रकार कोरिया , जापान और मलेशिया जैसे देश एशियाड में अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं ।
कुछ पूर्व चैम्पियनों के अनुसार भारतीय हॉकी के कर्णधारों के लिए एशियाड , ओलम्पिक , वर्ल्ड कप और कॉमनवेल्थ गेम्स महत्वपूर्ण तो हैं लेकिन टीम और खिलाडियों की पूरी ऊर्जा टूर्नामेंट से पहले ही खर्च कर दी जाती है । वरना क्या कारण है कि 1975 में वर्ल्ड कप और 1980 में ओलम्पिक खिताब जीतने के बाद भारतीय हॉकी ने कभी भी सराहनीय प्रदर्शन नहीं किया । हर बार बड़े बड़े दावों के साथ जाते हैं और अपना सा मुंह लेकर लौट आते हैं ।
प्रो लीग की जीत को कमतर आंकना ठीक नहीं होगा लेकिन इस प्रकार के बेमतलब आयोजनों से भारतीय हॉकी का कभी भला नहीं हुआ । जिस टीम को कल तक कोसा जा रहा था , कोच और सपोर्ट स्टाफ को बुरा भला कहा जा रहा था उसके भाव अचानक बढ़ा दिए गए हैं । मीडिया के एक ख़ास वर्ग और हॉकी इंडिया के पदाधिकारियों ने बाकायदा खिलाडियों का स्तुतिगान भी शुरू कर दिया है ।
खिलाड़ियोंऔर कोचों से दोस्ताना सम्बन्ध रखने वाला देश का मीडिया कह रहा है कि भारतीय हॉकी लौट आई है और पुराने गौरव तक पहुँचने के लिए राह आसान हो गई है । लेकिन चारण भाट यह भूल रहे हैं कि बाकी टीमें अपना श्रेष्ठ फ़ालतू के आयोजनों पर खर्च नहीं करते |यदि सचमुच ऐसा है तो देश के हॉकी प्रेमियों के लिए खुश खबरी है । चलिए फिलहाल आगामी एशियाड और अगले साल पेरिस में होने वाले ओलम्पिक खेलों तक धैर्य बनाए रखते हैं और अपनी हॉकी के लिए पूजा अर्चना जारी रखते हैं क्योंकि भारतीय हॉकी की नैया भगवान् ही पार लगा सकते हैं, कम से कम पिछले अनुभव और आंकड़े तो यही कहते हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |