ये पब्लिक है सब जानती है!

Every wrestler has to go through qualifying rules

खबर है कि धरना प्रदर्शन पर बैठे पहलवान अपने अपने काम पर लौट आए हैं। विशेषकर, साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जैसे शीर्ष पहलवानों का रेलवे में अपनी अपनी ड्यूटी ज्वाइन करना चर्चा का विषय बना हुआ है। यह भी कहा जाने लगा है कि पहलवानों और सरकार के बीच कोई गुप्त समझौता हो गया है और कुल भूषण शरण सिंह जैसा चाहते थे वैसा ही हो रहा है।

दूसरी तरफ शीर्ष पहलवान कह रहे हैं कि वे किसी दबाव में नहीं हैं और न ही उन्होंने कदम पीछे खींचे हैं। पहलवान यह भी कह रहे हैं कि यौन शोषण की शिकार नाबालिक ने अपना केस वापस नहीं लिया है। उनके अनुसार ब्रज भूषण खेमा बेवजह अनाप शनाप वक्तव्य दे कर लोगों का ध्यान भटका भटका रहा है।

ब्रज भूषण के पक्षधर यह भी कह रहे हैं कि धरना प्रदर्शन पर बैठे पहलवान एक्सपोज हो चुके हैं । उनके अनुसार पहलवानों में अब दम खम नहीं रहा । वे महीनों से अभ्यास नहीं कर रहे लेकिन एशियाड और ओलंपिक में सीधे उतरना चाहते हैं । चूंकि फेडरेशन ने उनकी बात नहीं मानी , जिस कारण से फेडरेशन अध्यक्ष की जान के दुश्मन बन गए हैं। उनकी मंशा बिना लड़े सीधे ओलंपिक खेलने की है, जिसके लिए सारा बवाल मचा है।

अर्थात देशवासियों का ध्यान भटकाने के लिए तरह तरह के झूठ परोसे जा रहे हैं । लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और वर्ल्ड रेसलिंग यूनियन के नियमों के अनुसार किसी भी पहलवान को एशियाड और ओलंपिक में भाग लेने के लिए राष्ट्रीय स्तर के बाद महाद्वीप और विश्व स्तर के आयोजनों से पार पाना होता है। इस बारे में आंदोलनकारी पहलवान भी नियमों को बखूबी जानते हैं। वे पहले भी एशियाड, एशियन चैंपियनशिप और वर्ल्ड चैंपियनशिप में धमाकेदार प्रदर्शन के साथ क्वालिफाइंग स्टैंडर्ड को हासिल कर ओलंपिक खेलते रहे हैं। बजरंग और साक्षी ने तो बाकायदा ओलंपिक में पदक भी जीते हैं।

अतः यह कहना कि पहलवानों पर उम्र हावी है और वे अपने कद का फायदा उठा कर सीधे ओलंपिक में उतरना चाहते हैं, “सरासर गलत है” । कुछ पूर्व पहलवानों और द्रोणाचार्य अवार्डियों की राय में देश के श्रेष्ठ पहलवानों में अब भी पर्याप्त दम खम है और कुछ दिनों की तैयारी से वे अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत का नाम रोशन कर सकते हैं।

यह सही है कि व्यवस्था के विरुद्ध लड़ने में उनके बहुत से दिन निकल गए लेकिन साक्षी, बजरंग और विनेश अब भी क्वालीफाई कर सकते हैं और पदक भी जीत सकते हैं, ऐसा ज्यादातर कोचों का मानना है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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