टेनिस में 140 करोड़ आबादी का फ्लॉप शो!

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स्पेन के कार्लोस अलकारेज अमेरिकन ओपन जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाडी बन गए हैं । एटीपी रैंकिंग में सबसे कम उम्र में नंबर एक पर विराजमान होने वाले 19 वर्षीय चैम्पियन के नाम और भी कई रिकार्ड जुड़ गए हैं । उधर महिला वर्ग में पोलैंड की 21 वर्षीय इगा स्वीतेक ने भी नया इतिहास रचा है और तीन ग्रांड स्लैम खिताब जीतने का करिश्मा कर चुकी हैं । लेकिन यह सब पहली बार नहीं हो रहा है । यूरोप , अमेरिका और कभी कभार शीर्ष एशियाई खेल राष्ट्रों के खिलाडी भी कम उम्र में ग्रांड स्लैम खिताब पर अपना नाम गुदवाते आए हैं ।लेकिन 140 करोड़ की आबादी वाला भारत वर्ष इस खेल में जहां खड़ा था उससे लगातार पीछे सरकता जा रहा है । ऐसा क्यों है,यह सवाल शायद हर भारतीय के दिल दिमाग में जरूर आता जाता होगा ।

जहाँ तक भारतीय उपलब्धियों की बात है तो एटलांटा ओलम्पिक में लियेंडर पेस का कांस्य पदक, महेश भूपति के साथ जोड़ी बना कर चारों ग्रांड स्लैम के युगल खिताब जीतना, एशियाई खेलों में कुछ खिलाडियों के पदक और छुट पुट अन्य सफलताएं भारतीय खिलाडियों को मिली हैं। लेकिन एक भी भारतीय खिलाडी एकल ग्रांड स्लैम ख़िताब नहीं जीत पाया है । हैरानी वाली बात यह है कि भारतीय खेलों के तथाकथित एक्सपर्ट, खेल जानकार और टेनिस की दुकान चलाने वाले आज तक यह नहीं जान पाए हैं कि भारतीय खिलाडी क्यों पिछड़ रहे हैं ।

कुछ साल पहले तक यह कहा जाता था कि टेनिस पैसे वालों का खेल है और गरीब पृष्टभूमि वाले खिलाडियों के लिए इस खेल में जगह बनाना आसान नहीं है । लेकिन दुनिया भर के चैम्पियन खिलाड़ियों पर नजर डालें तो अधिकांश अपने देशों के टाटा , बिरलाओं और अडानी, अम्बानी कि औलादें नहीं हैं । चलिए मान लिया कि टेनिस महंगा खेल है लेकिन इस भारत महान में प्रति करोड़ जनसँख्या के बीच 140 ऐसे धनाढ्य जरूर होंगे जिनके पास कड़ी मेहनत या लूट का अरबों होगा । यह आंकड़ा लाखों में हो सकता है क्योंकि एक सर्वे के अनुसार भारत में कुछ एक लाख देश का सारा धन दबाए हुए हैं ।

दूसरी तरफ नजर डालें तो कुछ ऐसे देश भी हैं जिनकी आबादी महज कुछ लाख है लेकिन उनके पास चैम्पियनों की भरमार है । ऐसा शायद इसलिए है क्यों कि इन देशों के खेल संघ, ओलम्पिक संघ , अभिभावक और खिलाडी ईमानदार हैं और देश के नाम सम्मान की कद्र करते हैं । चैम्पियन देशों के शीर्ष अधिकारीयों ने अपने नाम पर स्टेडियमों का निर्माण नहीं किया , उन्होंने खेल की सत्ता अपनी भावी पीढ़ी को सौंपने की बजाय काबिल हाथों में सौंपी । लेकिन इस देश में सबकुछ उल्टा पुल्टा हो रहा है । जो अधिकारी वीरगति को प्राप्त होता है उसके बेटे बेटियां सिंघासन को लूट खाते हैं । शायद यही सब अन्य खेलों की तरह टेनिस में भी हुआ है ।

राम नाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, आनंद अमृतराज, रमेश कृष्णन , लियेंडर पेस, भूपति और सानिया मिर्ज़ा जैसे नाम वर्षों से भारतीय टेनिस प्रेमियों को सुनाए, पढ़ाए और चटाए जा रहे हैं । इनके अलावा भारतीय टेनिस में और कुछ नहीं है । लेकिन कब तक इस नामों की दुहाई देकर अपनी लाज बचाई जा सकती है ? कोई है जो देश की सरकार, खेल मंत्रालय और टेनिस की दुकान चलने वालों से इस सवाल का जवाब मांग सके !

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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