क्यों गए डॉक्टर नरेंद्र बत्रा?

Dr Narinder Dhruv Batra

बात लगभग 25 साल पहले की है। तब भारतीय हॉकी फेडरेशन(आईएचएफ) की बाग़डोर स्वर्गीय कुंवरपाल सिंह गिल के हाथों में थी। उस समय पंजाब के पुलिस अधीक्षक गिल की तूती बोलती थी और अपराधी नाम के प्राणी उनके नाम से थर्राते थे। एक शाम संवाददाता सम्मलेन से पहले श्री गिल ने सम्बोधित करते हुए कहा, “लुक मिस्टर सजवान, ये सज्जन जम्मू कश्मीर हॉकी से हैं और एक दिन ये भारतीय हॉकी को बहुत ऊंचाई तक ले जाएंगे।” बात आई गई हो गई लेकिन एक दिन उन्हीं महाशय ने गिल का तख्ता पलट दिया और फिर आईएच ऍफ़ को ‘हॉकी इंडिया” बना कर गिल की बात को सच साबित कर दिखाया।

जी हाँ, यहाँ अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) और भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) के पूर्व अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र ध्रुव बत्रा की बात हो रही है, जिन्होंने पहले तो केपीएस का दिल जीता और फिर उन्हें हराकर भारतीय हॉकी को कब्ज़ा लिया। इस प्रकार गिल का विश्वास भी सच हुआ और सचमुच नरेंद्र बत्रा ने वह सब कर दिखाया जो उनसे पहले कोई भी हॉकी प्रशासक नहीं कर पाया था। लेकिन अब उन्होंने हॉकी और आइओइ के शीर्ष पदों से इस्तीफ़ा दे दिया है। इसलिए चूँकि उन पर कई ऐसे गंभीर आरोप लगे हैं जिनके बारे में शायद कभी न तो गिल साहब ने सोचा होगा और न ही भारतीय खेल प्रेमियों और हॉकी प्रेमियों को कभी अहसास रहा होगा।

बेशक, डाक्टर बत्रा पर लगे गंभीर आरोप देश के खेलों और खासकर हॉकी के लिए बेहद शर्मनाक हैं, क्योंकि उनकी छवि हमेशा एक ईमानदार और कड़क अधिकारी की रही है। आरोपों की जांच जांच एजेंसियां और माननीय न्यायालय कर रहे हैं। लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कभी ऐसी नौबत भी आ सकती है।
इसमें दो राय नहीं कि नरेंद्र बत्रा के लिए उनका कड़कपना ज्यादा घातक साबित हुआ। साथी अधिकारीयों के साथ उनके रिश्ते लगातार बिगड़ते चले गए और फिर एक दिन वह भी आया जबकि लगभग अलग थलग पड़ गए। बाद की कहानी आज पूरे देश और खेल जगत के सामने है।

भले ही बत्रा बुरे दौर से गुजर रहे हैं लेकिन उनके अच्छे कामों की चर्चा जरूर की जानी चाहिए। मरी गिरी भारतीय हॉकी को फिर से जिन्दा करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है । हॉकी इंडिया लीग और भारतीय हॉकी का अंतर्राष्ट्रीय दर्जा बढ़ाने में उनका योगदान सर्वोपरि रहा। आज भारतीय खिलाडी बिना किसी बड़ी उपलब्धि के मौज कर रहे हैं और लाखों में खेल रहे हैं तो बत्रा के प्रयासों से ही यह सम्भव हो पाया है। 41 साल बाद कोई ओलम्पिक पदक मिला तो उसमें भी उनके प्रयासों की भूमिका रही है । उड़ीसा सरकार द्वारा हॉकी को गोद लेना भी उनकी मेहनत का फल है। तो फिर चूक कहाँ हुई ?

हॉकी जानकारों और पूर्व खिलाडियों की माने तो बत्रा को ज्यादा सख्ती, सहकर्मियों के साथ असहयोगी रवैये और हॉकी बिरादरी को नाराज करने की सजा मिली है। कुछ सदस्य इकाइयों और हॉकी आयोजकों की नजर में उन्हें हिटलरशाही ले डूबी! देश के कई बड़े हॉकी आयोजनों के बर्बाद होने का कारण भी उन्हें बताया जा रहा है। कुल मिलाकर हॉकी इंडिया और आईओए में उनके दुश्मनों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई। हालाँकि इन इकाइयों में में भी खेल के लुटेरों की भरमार है और शायद एक दिन उन्हें भी सजा अवश्य मिलेगी।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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