ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब भारतीय महिला हॉकी टीम की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। हॉकी इंडिया के बड़े और कुछ चाटुकार मीडियाकर्मी टोक्यो ओलम्पिक में चौथा स्थान पाने वाली टीम, उसकी खिलाड़ियों और टीम प्रबंधन को सातवें आसमान पर उछाल रहे थे। लेकिन दूध का दूध हो गया है। जिस टीम को ओलम्पिक गोल्ड की दावेदार कहा जा रहा था उसका दमखम जवाब दे चुका है।
ओलम्पिक क्वालीफायर में अमेरिका और जापान से पिटने वाली भारतीय लड़कियों को अपने मैदान और दर्शकों के सामने सिर झुकाकर मैदान छोड़ना पड़ा। उनकी विदेशी कोच जेनेक शॉपमैन की भूमिका पर सवाल उठे लेकिन हॉकी इंडिया ने उसे बनाए रखा है।
रांची में हॉकी प्रेमियों का दिल तोड़ देने वाले प्रदर्शन के बाद अब महिला टीम ने भुवनेश्वर एफआईएच प्रो-लीग में भी खराब प्रदर्शन का सिलसिला बरकरार रखा है और क्रमश: नीदरलैंड, चीन और ऑस्ट्रेलिया से हारकर यह बता दिया है कि भारतीय महिला हॉकी रसातल में धसक रही है।
भारतीय हॉकी प्रेमी जानते हैं कि टोक्यो ओलम्पिक में चौथा स्थान अर्जित करने के बाद भारतीय महिला हॉकी के कर्णधारों ने हुंकार भरते हुए कहा था कि पेरिस ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतेंगे। लेकिन अमेरिका और जापान से हारने के बाद इस टीम के बारे में आम धारणा बदल रही है। हॉकी जानकारों के अनुसार कप्तान व गोलकीपर सविता पूनिया पर उम्र भारी पड़ रही है। ज्यादातर लड़कियों के लिए खेल बोझ लगने लगा है। इसलिए क्योंकि शायद उम्र की धोखाधड़ी आम है। हार का एक बड़ा कारण पेनल्टी कॉर्नर पर गोल बचाना और पेनल्टी कॉर्नर पर गोल बनाना भी है और दोनों ही क्षेत्र में भारतीय लड़कियां कमजोर पड़ रही हैं।
कुल मिलाकर भारतीय हॉकी के लगभग सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं। लाखों – करोड़ों बहाने के बाद भी ओलम्पिक क्वालीफायर नहीं जीत पाए। अर्थात अब एक बार फिर शुरू से शुरू करना होगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |