फुटबाल में गिरावट: अनुशासन हीनता और गंभीरता की कमी

www.saachibaat.com 77

भारतीय फुटबाल आज कहां खड़ी है और क्यों अर्श से फर्श पर आ गिरी है, किसी से छिपा नहीं है। आपने ‘ यथा राजा, तथा प्रजा ‘ वाली कहावत तो सुनी ही होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि जब देश की फुटबाल ठीक ठाक नहीं चल रही तो जाहिर है कि राज्य और जिला स्तर पर भी कहीं भी फुटबाल को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।

इस बारे में साठ – सतर के दशक और बाद के कुछ जाने माने खिलाड़ियों से बात की गई तो ज्यादातर की राय में आज बेहतर सुविधाएं मिलने के बाद भी यदि दिल्ली और देश की फुटबाल तरक्की नहीं कर रही तो एक दो नहीं कई कारण जिम्मेदार हैं। पूर्व खिलाड़ी सबसे बड़ा कारण अधिकाधिक सुविधाएं मिलने को मानते हैं। ऐसी राय रखने वाले खिलाड़ियों में से कुछ एक विनय मार्ग स्थित केंद्रीय सचिवालय मैदान पर शनिवार – रविवार को मिलते हैं और पुराने अनुभव शेयर करते हैं। भीम सिंह भंडारी, कमल किशोर जदली, हरेंद्र नेगी, चमन भंडारी, वीरेंद्र मालकोटी, धनेंद्र रावत, चंदन रावत, रविंद्र रावत, सुब्रमण्यम, माइकल, डेंजिल, शिव प्रसाद, विजेंद्र रौथन और स्वयं लेखक 1970 – 80 के दशक में दिल्ली और देश की फुटबाल में बड़ा नाम रहे। शिमला यंग, गढ़वाल हीरोज, मून लाइट, मुगल्स, यंग मैन, स्टेट बैंक, पीएनबी, रिजर्व बैंक आदि के लिए खेले । इनमें से ज्यादातर खिलाड़ी गुमनामी में जी रहे हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। उनके अनुभव का फायदा उठाने के लिए डीएसए और उससे रजिस्टर्ड क्लब तैयार नहीं हैं । पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार उनके जमाने के खिलाड़ी बेहद अनुशासित थे, बड़े – छोटे की कद्र करते थे और घंटों पसीना बहाते थे और बदले में उन्हें चाय मट्ठी की खुराक ही मिल पाती थी। अनुशासन, कड़ी मेहनत, बड़ों का आदर सम्मान खिलाड़ियों की शिक्षा दीक्षा में शामिल था लेकिन आज पैसा , झूठ और दिखावा बचा है।

राजधानी के तालकटोरा स्टेडियम में पूर्व खिलाड़ियों का एक बड़ा जत्था साप्ताहिक अवकाश पर हल्का फुल्का अभ्यास करने और अपने कामयाब फुटबाल जीवन की यादें ताजा करने के लिए एकत्र होता है। इन खिलाड़ियों में रंजीत थापा , सुरेंद्र कुमार, सतीश रावत, सुखपाल बिष्ट, अमर चंद, दिलीप, लाला अग्रवाल, दिलीप कुमार, हरेंद्रबल्ली जैसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने मफतलाल, मोहम्द्दन स्पोर्टिंग , शिमला यंगस, दिल्ली कैंट, डीडीए, डेसू ऑडिट, एफसीआई , बैंको और अन्य विभागों को सेवाएं दीं और खूब नाम कमाया। इन खिलाड़ियों को लगता है कि दिल्ली की फुटबाल भटक गई है। क्लब चलाने वाले वे लोग हैं जिन्होंने कभी फुटबाल नहीं खेली।

पूर्व में दिल्ली की फुटबाल को सेवाएं देने वाले नामी खिलाड़ियों, अधिकारियों, रेफरियों और कोचों का एक बड़ा वर्ग अंबेडकर स्टेडियम से अपना भाई चारा चलाता है। इनमें अजीत कुरेशी, मिराजुद्दीन, स्वालीन, जूलियस सीजर, मंजूर अहमद, रॉबर्ट सैमुअल, हेम चंद, सलीम, असलम, वीरेंद्र, गुलजार, मान, जगदीश मल्होत्रा शामिल हैं।
तमाम पूर्व खिलाड़ी मानते हैं कि खेल में अनुशासन हीनता बढ़ी है। क्लब, अधिकारी और खिलाड़ी पेशेवर तो हुए हैं लेकिन उनके खेल का स्तर बुरी तरह गिरा है।

https://saachibaat.com/sports/aman-the-only-hope-of-mens-wrestling/

Rajendar Sajwan

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *