पिछले कुछ सालों में डोप के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। भले ही वाडा कितना भी सख्त हो और कठोर कदम उठाए फिर भी खिलाड़ियों द्वारा नाजायज और अप्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल रोके नहीं रुक पा रहा। यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। एक जानी मानी जिमनास्ट, कई जूडो खिलाड़ी, तैराक, वूशु खिलाड़ी, कई नामी एथलीट और अन्य कई मादक पदार्थों के सेवन के चलते पकड़ में आए, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
पिछले कुछ महीनों में जो भारतीय खिलाड़ी डोप की चपेट में आए हैं, उनमें से कुछ एक जाने माने हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान सम्मान कमा चुके हैं। नामी गिरामी खिलाड़ियों द्वारा प्रतिबंधित दवाओं का सेवन करना और पकड़ में आना न सिर्फ अपराध है अपितु देश का नाम भी खराब होता हैं। इसमें दो राय नहीं कि पिछले कुछ सालों में भारतीय खेलों को दुनिया भर में बड़ी बदनामी झेलनी पड़ी है। कई नामी खिलाड़ी डोप में फंसे तो शीर्ष अधिकारियों की काली करतूतों के चलते थू थू का सामना करना पड़ा है। आईओए और कुछ खेल संघों को जगहंसाई का पात्र भी बनना पड़ा है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारतीय खिलाड़ी ही नशाखोरी कर रहे हैं। अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, जमैका, चीन जैसे खिलंदड़ राष्ट्र भी इस अपराध में संलिप्त हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि उनके पास खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार और डोप से बचाव की अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध है, जबकि हमारे तथाकथित विख्यात डाक्टर, खेल वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक सिर्फ दावे करने और शेखी बघारने तक सीमित हैं।
कुछ साल पहले खिलाड़ियों की खुराक, फिटनेस और डोप पर शोध करने वाले स्पोर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट डाक्टर सरंजीत सिंह ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि दुनिया के बड़े छोटे सभी देशों के खिलाड़ी डोप के फेर में हैं । फर्क इतना है की जो पकड़ा गया, चोर कहलाता है। उनके अनुसार अमेरिका और रूस जैसे देश एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए डोप पर लगातार शोध कर रहे हैं ताकि अधिकाधिक पदक जीत सकें और दूसरे से आगे निकल सकें।
जहां तक भारतीय एक्सपर्ट्स की बात है तो इस क्षेत्र में बड़ी प्रगति नहीं हुई है । नतीजन वाडा को उपहास का पात्र बनना पड़ता है। यह भी देखने में आया है कि दिल्ली, बंगलौर, चेन्नई, पटियाला, भुवनेश्वर , हैदराबाद और छोटे बड़े राज्यों के तमाम स्टेडियमों के शौचालय भारतीय खिलाड़ियों की डोप गाथा के गवाह मिलेंगे। अर्थात भारतीय खिलाड़ी नीचे से ऊपर तक डोप के फेर में हैं और पकड़े वही जा रहे हैं जिन्हें सलीका नहीं आता । कुछ भारतीय एक्सपर्ट्स तो यहां तक कह रहे हैं कि भारत को यदि ओलंपिक और एशियाड में अधिकाधिक पदक जीतने हैं तो सिर्फ कानूनी तकनीक से काम नहीं चलने वाला । आज वही देश सबसे आगे हैं जो गैरकानूनी को कानूनी जामा पहनाने का हुनर जानते हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |