बिगड़ैल, गुस्सैल और तुनकमिजाज खिलाड़ियों की कुआदतों पर अंकुश लगाने के लिए यूनियन ऑफ यूरोपियन फुटबॉल (यूईएफए) ने कड़े कदम उठाने की घोषणा की है। आगामी यूरोपियन चैम्पियनशिप में खेल और खिलाड़ियों को नियंत्रित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि बीच मैदान में रेफरी या लाइनमैन के किसी भी फैसले पर आपत्ति जताने के लिए सिर्फ और सिर्फ टीम कप्तान मान्य होगा। अर्थात यदि कोई टीम या खिलाड़ी रेफरी के किसी फैसले से असहमत है तो उसका कप्तान मैच रेफरी से शिकायत कर सकता है, जो कि वीडियो असिस्टेंट रेफरी की मदद से मामले की तह तक जा सकता है और जरूरत पड़े तो फैसला बदल भी सकता है।
बेशक, यूरोपियन फुटबॉल की शीर्ष संस्था ने एक बड़ी समस्या का निदान खोजने की पहल की है। फिलहाल, इस प्रयोग को आगामी चैम्पियनशिप के चलते देखा-परखा जाएगा।
दुनियाभर के फुटबॉल जानकारों और रेफरियों ने इस प्रयोग का स्वागत किया है और खेल की बेहतरी के लिए स्वागत योग्य कदम करार दिया है। खासकर, रेफरियों की सुरक्षा और आदर-सम्मान की दृष्टि से यह प्रयास शानदार माना जा रहा है। फिलहाल, भारतीय फेडरेशन (एआईएफएफ) ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। हो सकता है कि इस दिशा में सोचा भी ना गया हो। लेकिन मामला गंभीर है। इसलिए क्योंकि भारतीय फुटबॉल में रोज कई रेफरी पीटे और कुचले जाते हैं, जिनकी खबर मीडिया तक इसलिए नहीं पहुंच पाती क्योंकि एआईएफएफ और उसकी सदस्य इकाइयों को खिलाड़ियों और रेफरियों की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं रहा।
यदि एआईएफएफ देश में आयोजित होने वाले स्कूल, कॉलेज, छोटे-बड़े आयु वर्ग, राज्यस्तरीय लीग और अन्य आयोजनों पर करीब से नजर रखे तो उसे कई ऐसे मामले दिखाई पड़ जाएंगे जहां रेफरियों को सम्मानित और आदरणीय नहीं समझा जाता। खिलाड़ियों और उनके टीम मालिकों को रेफरी किसी जल्लाद और दुश्मन जैसे नजर आते हैं। खासकर, तब जब वह लाल पीला कार्ड दिखाकर बिगड़ैल और बदमिजाज खिलाड़ियों को नियंत्रित करता है।
(लेकिन क्या रेफरी दूध के धुले है? अगले अंक में पढ़िये)।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |