दिल्ली के फुटबाल ढाँचे पर सरसरी नज़र डालें तो प्रीमियर लीग में खेलने वाले , सीनियर डिवीज़न और निचले स्तर के तमाम क्लबों में दिल्ली के अपने कहे जाने वाले खिलाडियों की संख्या बहुत कम है और पिछले कुछ सालों से राजधानी के अपने खिलाडी लगातार घट रहे हैं । शायद ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि दिल्ली के स्कूल कॉलेजों में फुटबाल को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा । यह भी कहा जा रहा है कि दिल्ली की फुटबाल अकादमियों का स्तर ऊंचा नहीं है या अकादमी के नाम पर गोरखधंधा चल रहा है ।
पहली दिल्ली प्रीमियर लीग में शामिल 11 क्लबों की बनावट को देखें तो दस क्लब ऐसे हैं जिनमें स्थानीय खिलाडियों की संख्या नहीं के बराबर है । डीएसए लीग चैम्पियन दिल्ली एफसी, पूर्व चैम्पियन गढ़वाल एफसी, सुदेवा, रॉयल रेंजर्स, रेंजर्स, तरुण संघा , उत्तराखंड, हिन्दुस्तान एफसी, फ्रेंड्स यूनाइटेड और वायु सेना (दिल्ली) में अपने कहे जाने वाले खिलाडी खोजे नहीं मिल पाएंगे । लेकिन एक क्लब है जिसने दिल्ली के खिलाडियों पर भरोसा किया और उन्हें अपने बेड़े में प्रमुखता के साथ शामिल कर कर वह सब कर दिखाया जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा ।
जी हाँ, यह क्लब वाटिका एफसी है , जिसे दिल्ली की फुटबाल में दाखिला लेते वक्त हलके में लिया गया था । कुछ एक ने तो यहाँ तक कहा था कि वाटिका के संरक्षकों का दिमाग खराब हो गया है । पचास लाख खर्च करने के बाद बनाई तो एक लंगड़ी टीम जिसमें दिल्ली के खिलाडी भरे पड़े हैं । लेकिन कुलभूषण मंद्रवाल (कुल्लू) की कोचिंग और क्लब के सरंक्षको के भरोसे ने तमाम आलोचकों के मुंह पर जोरदार तमाचा जड़ा है ।
पहले ही प्रवेश में पहली प्रीमियर लीग में तहलका मचा कर इस क्लब ने दिल्ली की फुटबाल और दिल्ली के खिलाड़ियों को गौरवान्वित किया है। जो लोग दिल्ली की फुटबाल के पतन की घोषणा कर चुके थे वे अब शर्मिंदा हैं और एक बार फिर से अपने खिलाड़ियों की खोज खबर लेते नजर आ रहे हैं। ऐसा वाटिका के हैरत अंगेज प्रदर्शन के बाद ही सम्भव हो पाया है। चैम्पियन टीम में दो नाइजीरियन खिलाड़ियों के अलावा बाकी सब देसी और दिल्ली के हैं ।
स्थानीय खिलाड़ियों पर दांव खेला जाना सचमुच जोखिम भरा था लेकिन टीम प्रबंधन और कोच कुलभूषण ने स्थानीय स्कूल, कालेज और क्लब के खिलाड़ियों पर भरोसा किया और यह साबित कर दिया कि दिल्ली के खिलाड़ियों में दम है। जरूरत इस बात की है कि स्थानीय क्लब और कोच अपने खिलाड़ियों पर भरोसा करें ।
दिल्ली के अधिकांश क्लब हरियाणा, पंजाब, यूपी, उत्तरखण्ड, बंगाल और नाइजीरियन खिलाड़ियों के दम पर चल रहे हैं। पिछले दो दशकों से अपने खिलाड़ियों को लगभग भुला दिया गया था और लाखों की फिजूलखर्ची से बाहरी खिलाड़ियों की खरीद फरोख्त की जा रही थी। देखना यह ह्योग कि क्या वाटिका के धमाकेदार प्रदर्शन के बाद कोई बदलाव आता है या दिल्ली के खिलाडियों की अनदेखी की जाती रहेगी !
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |