पिछले दिनों प्रशासनिक सेवा से जुड़े एक दम्पति का तबादला इसलिए कर दिया गया क्योंकि उनका कुत्ता दिल्ली के त्यागराज नगर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में खुला घूम रहा था। तर्क दिया गया कि स्टेडियम और खेल मैदान खिलाडियों के लिए बने हैं ना कि कुत्ते घुमाने के लिए। शायद अपनी किस्म का यह पहला मामला है जबकि किसी बड़े अधिकारी को कुत्ते के कारण इतनी बड़ी सजा मिली हो। देश के आम नागरिक , खेल प्रेमी और खिलाड़ियों ने भी इस फैसले का स्वागत किया।
दूसरी तरफ एक बड़ी समस्या यह है कि दिल्ली और देश के तमाम खेल मैदान और पार्क कुत्तों की शरण गाह बन चुके हैं। आवारा कुत्तों कि तादात लगातार बढ़ रही है। ऊपर से पालतू कुते भी आम नागरिक की सिरदर्दी बढ़ा रहे हैं। । खैर बड़े स्टेडियमों और खेल मैदानों से आवारा कुत्तों को सुरक्षा कर्मीयों की मदद से हटाया जा सकता है लेकिन पार्कों से उन्हें कैसे दूर रखा जाए? स्वास्थ्य लाभ के लिए आम नागरिक पार्क जाना चाहते हैं लेकिन कुत्तों का डर रहता है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि दिल्ली और देश की सरकारों ने अपने नागरिकों के स्वास्थ्य लाभ के लिए योग को प्रमुखता दी है। भारत सरकार के प्रयासों से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत भी हो चुकी है| दिल्ली सरकार ने भी योग के महत्व को समझा है और बाकायदा अपने योग शिक्षकों की मदद से कक्षाएं शुरु की है, जोकि ज्यादातर खुले पार्कों में चल रही हैं। लेकिन योग से जुड़े साधक और शिक्षक कुत्तों के कारण बहुत परेशान हैं। उनके योगस्थल कुत्तों की पोटी से भरे पड़े हैं। इसलिए क्योंकि स्थानीय लोग अपने कुत्तों को घुमाने फिराने के बहाने पार्कों में पोटी कराने लाते हैं।
पार्कों में योगाभ्यास करने वाले साधक सरकारों से पूछना चाहते हैं कि कोरोना महामारी से ग्रस्त देश में शुद्ध खान पान का आभाव है, नौकरी पेशा लोगों की दिनचर्या भी व्यवस्थित नहीं है। ले देकर योग पर भरोसा है लेकिन कहाँ योग करें? इसका जवाब तो केंद्र और राज्य सरकारें ही दे सकती हैं, जिनके लिए योग सिर्फ और सिर्फ राजनीति का माध्यम भर है।
यह सही है कि देश का एक वर्ग बंद कमरों और वातानुकूलित हालों में योग और फिटनेस के महंगे कार्यक्रम चला रहा है। उनके पास साधन हैं लेकिन गरीब तबके के साधक कहाँ जाएं। उनके लिए तो खुले पार्क ही बचते हैं जिन पर कुत्तों का कब्ज़ा है, जिनके मालिक काटने को दौड़ते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार देशभर में कुत्ते और बंदरों का आतंक फैला हुआ है। बंदरों को नियंत्रित करना मुश्किल है लेकिन पालतू कुत्तों को गंद फ़ैलाने से रोका जा सकता है, पोटी बैग पहनाए जा सकते हैं। उनके मालिकों को समझाया जा सकता है और ना मानें तो कानूनी कार्यवाई की जा सकती है । यह ना भूलें कि कुत्तों के काटने के चलते कई बच्चे जान गँवान चुके हैं। रोज ही दर्जनों मामले दर्ज होते हैं फिरभी देश के जिम्मेदार नेता और प्रशासक गूंगे बहरे बने हुए हैं। योग से जुड़े हजारों लोग लोग नाराज हैं और कहते हैं कि खोखली लोकप्रियता और वोटों के भूखे पता नहीं कब होश में आएंगे, तब जबकि तमाम पार्क कुत्तों की पोटी से पट जाएंगे!
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |