उधर विनेश फोगाट दुर्भाग्य की शिकार होकर कराह रही थी, आईओसी , आईओए और अपनी सरकार से न्याय की गुहार लगा रही थी तो दूसरी तरफ देश के खेलमंत्री मनसुख मांडविया संसद में विनेश पर किए गए खर्च का ब्यौरा दे रहे थे। धिक्कार-धिक्कार (shame-shame) के संबोधनों के बीच उन्होंने पूरा ब्यौरा दिया और बताया कि विनेश की ओलम्पिक तैयारी पर 70,45,775 रुपये खर्च किए गए। मंत्री जी ने बकायदा पूरे ब्रेक-अप के साथ बताया कि उसकी ट्रेनिंग और विदेश दौरों पर कब, कहां, कितना खर्च हुआ।
चाहे कसूरवार कोई भी हो लेकिन किसी खिलाड़ी को 100 ग्राम वजन की कीमत पर ओलम्पिक पदक गंवाना पड़े यह निसंदेह उस देश के खेल तंत्र के लिए शर्मनाक है। लेकिन इससे ज्यादा शर्मनाक है देश के मुखिया और उनके अपने तंत्र द्वारा चुप्पी साधना और जब मुंह खोला तो विनेश का पूरा हिसाब-किताब संसद सदन के सामने रख दिया। जवाब में कुछ विपक्षी सांसदों ने यह जानना चाहा कि कुछ खिलाड़ियों पर करोड़ों खर्च किए गए लेकिन सैर-सपाटा कर खाली हाथ लौट आए। उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे? कुछ विपक्षी सांसद कह रहे हैं कि खेलमंत्री ने जो कुछ संसद में कहा वो विनेश के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा था।
विनेश को चार करोड़ देने और अन्य प्रभलोनों को लेकर भी विपक्ष नाराज है। उन्हें इस बात की भी शिकायत है कि प्रधानमंत्री ने तब विनेश की खबर ली जब दुनियाभर में उसके निष्कासन की खबर फैल गई। जब उसे गोल्ड मेडल की दावेदार मान लिया गया था, तब तक सरकारी तंत्र पूरी तरह मौन था। भले ही इस प्रकरण में कहीं कोई साजिश ना हो लेकिन सिस्टम से जमकर लड़ने वाली विनेश सरकार की आंख की किरकिरी बन चुकी थी उस सरकार की, जिसे ओलम्पिक निपटने के बाद पता चल गया है कि एक गोल्ड मेडल की कीमत क्या होती है। क्योंकि गोल्ड नहीं जीत पाए तो पदक तालिका में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे बड़ी आबादी वाले देश को सम्मानजनक स्थान कदापि नहीं मिल सकता। भारी-भरकम तामझाम के साथ और बड़े-बड़े नारे लगाते हुए पेरिस गए थे लेकिन चंद झुनझुने ही जीत पाए। इसका जवाब कौन देगा और किसके सिर पर गाज गिरेगी?
Rajendar Sajwan
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |