पिछले कुछ दशकों में एशियाई हॉकी के लिए जर्मनी, हॉलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी बड़ी सरदर्दी रहे हैं। एशियाई हॉकी के मायने तब भारत और पाकिस्तान हुआ करते थे, और शायद आज भी हैं। दोनों देशों की बादशाहत लंबे समय तक रही लेकिन अब दोनों अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
खैर भारत ने टोक्यो ओलंम्पिक में कांस्य पदक।जीत कर भविष्य की उम्मीद बंधाई है पर पाकिस्तान की हॉकी फिलहाल ट्रैक से बाहर होती नज़र आ रही है। दो बार ओलंम्पिक के लिए क्वालिफाई नहीं करने वाली पाक टीम जूनियर वर्ल्डकप में दावे उछालते हुए आई थी। कोच और कप्तान ने तो यहां तक कहा था कि पाकिस्तान भाग लेने वाली टीमों को हैरान कर देगा। पाकिस्तान को जर्मनी और अर्जेंटीना ने हरा दिया और अंततः मेजबान और गत विजेता भारत एवम मलेशिया ही एशियन चुनौती के रूप में बचे हैं।
क्वार्टर फाइनल में भारत का मुकाबला बेल्जियम से होना है, जोकि पिछले एक दशक में बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। भारतीय हॉकी प्रेमी यह नहीं भूले होंगे कि इसी बेल्जियम की सीनियर टीम ने टोक्यो ओलम्पिक के सेमी फाइनल में भारत को परास्त किया था। अब उसकी जूनियर टीम क्वार्टर फाइनल में भारतीय जूनियरों के सामने डटी है। बेल्जियम का मनोबल इसलिए ऊंचा है क्योंकि उसने अपने ग्रुप के सभी मैच जीते जबकि भारत को फ्रांस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि भारतीय टीम को अपने मैदान और अपने प्रशंसकों का लाभ मिलेगा और फ्राँस से हारने के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने कनाडा और पौलैंड को बड़े अंतर से हराया। लेकिन आर पार के मुक़ाबलेऔर प्रतिद्वंद्वी के बढ़ते कद का दबाव मेजबान खिलाड़ियों पर हो सकता है।
अन्य क्वार्टर फाइनल मुकाबलों में जर्मनी को स्पेन से, हालैंड को अर्जेंटीना से और फ्राँस को मलेशिया से खेलना है। जहां तक भारतीय टीम की बात है तो शुरुआती झटके से सबक लेकर उसके प्रदर्शन में सुधार दिखाई दिया है। सीनियर टीम की तरह जूनियर खिलाड़ी भी आक्रामक खेल रहे हैं। जूनियर खिलाड़ियों को पता है कि एक खिताबी जीत उन्हें बहुत आगे ले जा सकती है।
वर्तमान टीम के कई खिलाड़ी पेरिस ओलंम्पिक में खेलते नजर आएंगे और उनकी जीत टोक्यो में जीते पदक की चमक और बढ़ा सकती है। ज़ाहिर है मुकाबला करो या मरो जैसा बन गया है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |