दिल्ली से नहीं हारने की कसम खाई थी!

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राष्ट्रीय खेलों की फुटबॉल स्पर्धा में भले ही केरल बाजी मार गया लेकिन सुर्खियों में मेजबान राज्य उत्तराखंड और दिल्ली की प्रतिद्वंद्विता रही। उत्तराखंड के फुटबॉल प्रेमियों, टीम सदस्यों और खिलाड़ियों से पूछें तो उनका कहना है कि खिताब नहीं जीत पाने का उन्हें मलाल है लेकिन दिल्ली को सेमीफाइनल में हराने का सुकून शब्दों में बयान नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने दिल्ली से नहीं हारने की कसम खाई थी l

दिल्ली और उत्तराखंड की टक्कर सेमीफाइनल में हुई और दोनों टीमों ने इस मुकाबले को संभवतया मान-सम्मान और नाक का सवाल बना लिया था। टाई-ब्रेकर में उत्तराखंड ने बाजी मारी और इस जीत को उसके खिलाड़ियों ने खिताबी जीत से भी बढ़कर आंका। टीम प्रबंधन और खिलाड़ियों का कहना है कि उन्होंने दिल्ली से नहीं हारने का प्रण लिया था l राष्ट्रीय खेलों में पहली बार भाग ले रहे राज्य ने भले ही कप नहीं जीता लेकिन अपने प्रदेश के फुटबॉल प्रेमियों को दिल जरूर जीत लिया है।

दोनों राज्यों के बीच पिछले प्रदर्शन पर नजर डालें तो उत्तराखंड कभी भी दिल्ली पर भारी नहीं पड़ा है। कुछ साल पीछे चलें तो क्लब स्तरीय आयोजनों में दिल्ली ने हमेशा उत्तराखंड के क्लबों को अदना साबित किया। लेकिन अब उत्तराखंड को बढ़त मिल गई है, जिसे बनाकर रखने की जरूरत है। लेकिन यह ना भूलें कि सिल्वर मेडल जीतने वाले प्रदेश के चार-पांच खिलाड़ी दिल्ली क़े हैं। यह भी सच है कि दिल्ली की फुटबॉल में हमेशा से उत्तराखंडी मूल के खिलाड़ियों का बड़ा योगदान रहा है। आज भी राजधानी के प्रमुख बड़े क्लब गढ़वाली-कुमाऊंनी खिलाड़ियों के दम पर खड़े हैं।

बेशक, राष्ट्रीय खेलों के फाइनल में पहुंचने और राष्ट्रीय फुटबॉल में ऊंचा मुकाम पाने के बाद अब उत्तराखंड के फुटबॉल आकाओं की जिम्मेदारी बढ़ गई है। उन्हें कामयाबी से सबक लेना होगा। बेहतर होगा कि सबसे पहले सड़े-गले और भ्रष्टाचार से सने फुटबॉल ढांचे को सुधारा जाए और क्लब फुटबॉल को फिर से जीवंत करें। यही मौका है कि प्रदेश के सभी अवसरवादी एकजुट होकर राज्य की फुटबॉल को सजाएं-संवारें। याद रहे, ऐसे मौके बार-बार नहीं मिला करते हैं।

(लेखक/पत्रकार खुद भी राष्ट्रीय स्तर का फुटबॉलर रहा है और दिल्ली के चैम्पियन गढ़वाल हीरोज व अन्य क्लबों के लिए खेल चुका है)

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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