हरियाणा की छोरियों पर कैसे भारी पड़ीं दिल्ली की लड़कियां!

Delhi girls are the real champion

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
हाल ही में खेले गए एएफसी एशिया कप फुटबाल टूर्नामेंट में भारतीय महिला टीम की फजीहत के बाद देश में महिला फुटबाल के लिए बन रहे माहौल को करारा झटका लगा है। अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन के नाकारापन के चलते भारत को अपनी मेजबानी में मात्र एक मैच खेलने के बाद टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा था, क्योंकि मेजबान टीम की 13 खिलाडी कोरोना पॉजिटिव पाई गई थीं। लेकिन इधर दिल्ली के फुटबाल प्रेमियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है। कोरोना और तमाम बाधाओं के चलते दिल्ली की महिला फुटबाल ने अपनी पहली प्रीमियर फुटबाल लीग का बखूबी आयोजन किया, जिसमें हंस फुटबाल क्लब विजेता बना।

महिला लीग चर्चा में:
उस समय जबकि भारत में फुटबाल का स्तर गिरावट के चरम पर है और भारतीय फुटबाल को संचालित करने वाली फेडरेशन बेशर्मी पर उत्तरी है, दिल्ली साकर एसोसिएशन द्वारा महिला लीग का शानदार आयोजन हर तरफ चर्चा का विषय बना हुआ है| दरअसल, दिल्ली शायद एकमात्र ऐसी यूनिट है जहाँ महिला फुटबाल को बढावा दिया जा रहा है। जहां एक और आईएसएल और आई लीग जैसे भौंडे आयोजनों ने भारतीय फुटबाल को बर्बाद कर दिया है तो कुछ एक प्रदेशों में वार्षिक लीग का आयोजन जैसे तैसे किया जा रहा है जिनमें देश की राजधानी एक है। तारीफ की बात यह है कि दिल्ली में 24 टीमें महिला लीग में शामिल हैं, जिनमें पहली छह का स्तर लगभग एक जैसा है।

हरियाणवी छोरियां छा गईं :
दमखम वाले भारतीय खेलों पर नज़र डालें तो प्रायः सभी खेलों में हरियाणा के खिलाडियों का दबदबा है। फुटबाल और खासकर महिला वर्ग में भी हरियाणवी लड़कियां लगातार आगे बढ़ रही हैं। दिल्ली की अधिकांश टाप टीमों में हरियाणा की लड़कियां आगे से नेतृत्व कर रही हैं। विजेता हंस क्लब को छोड़, उप विजेता सिग्नेचर एफसी , होप्स, ग्रोइंग स्टार, रॉयल रेंजर्स, ईव्स आदि प्रमुख क्लबों की ताकत हरियाणवी छोरियां हैं। सीधा सा मतलब है कि अधिकांश स्थानीय क्लब हरियाणा के दम पर चल रहे हैं जोकि आज के पेशेवर दौर में अच्छा संकेत है। लेकिन दिल्ली के फुटबाल आकाओं को हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठना चाहिए।

स्कूल स्तर पर बढावा दें:
यह सही है कि हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी, कोलकाता और कुछ अन्य प्रदेशों कि लड़कियां दिल्ली की फुटबाल को गौरवान्वित कर रही हैं। लेकिन कब तक? अक्सर देखा गया है कि बाहरी प्रदेशों की खिलाडी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दिल्ली के लिए भाग नहीं ले पातीं या तब ही खेलती हैं जब उन्हें अपने प्रदेश की टीम में जगह नहीं मिल पाती। ऐसे में दिल्ली की टीम का संतुलन गड़बड़ा जाता है। यह न भूलें कि चैम्पियन हंस क्लब कि अधिकांश खिलाडी दिल्ली से हैं। ज़ाहिर है दिल्ली की लड़कियों में दम है। जरुरत उन्हें सिखाने पढ़ाने की है। हंस महिला क्लब की अध्यक्ष और जानकी देवी कालेज की डीपीई और महिल फ़ुटबाल लीग की चेयर पर्सन प्रीती अरोड़ा(बॉबी) की राय में स्थानीय लड़कियों को अधिकाधिक अवसर प्रदान करने और प्रोत्साहन देने से ही फुटबाल दिल्ली आगे बढ़ सकती है। पूर्व खिलाडी विनीता बलूनी, जानी मानी गोलकीपर अदिति चौहान, नेहा, ज़ाकिर हुसैन कालेज की डीपीई सायमा अहमद और ऋतू चौहान भी मानती हैं कि स्कूल कालेज स्तर पर अपनी खिलाडियों को प्राथमिकता देना दिल्ली की फुटबाल के हित में रहेगा।

हंस ने दिखाया दिल्ली का दम:
दिल्ली की अपनी खिलाडियों से सजे हंस क्लब ने प्रीमियर लीग का ख़िताब जीत कर यह साबित कर दिया कि दिल्ली की खिलाडियों को अधिकाधिक अवसर दे कर अन्य क्लब भी बड़े खर्च और परेशानियों से बच सकते हैं। लेकिन जरुरत इस बात की है कि स्थानीय स्कूलों और कालेजों में फुटबाल के लिए माहौल बनाया जाए। दिल्ली साकर एसोसिएशन ने महिला फुटबाल को बेहतर प्लेटफार्म मुहैया कराया है जिसे और बेहतर बनाने का दायत्व क्लब का है। उन्हें विजेता हंस क्लब से सीख जरूर लेनी चाहिए।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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