दिल्ली ओलम्पिक एसोसिएशन (डीओए) के बैनर तले दिल्ली गेम्स के आयोजन से राजधानी के खिलाड़ियों का उत्साह लौट आया है। खासकर, मार्शल आर्ट्स खेलों में खिलाड़ी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन इन खेलों के आयोजन का औचित्य क्या है, फिलहाल कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। लेकिन भाग लेने वाले खिलाड़ी, उनके कोच और अभिभावक मानते हैं कि फिटनेस के प्रति जागरूकता इन खेलों का मूलमंत्र है। यही कारण है कि ओलम्पिक और एशियाड में शामिल खेलों की बजाय मार्शल आर्ट्स की भागीदारी खेलों में कहीं ज्यादा है। तारीफ की बात यह है कि जिन खेलों को आईओए और आईओसी की मान्यता नहीं है, उनमें अधिकाधिक खिलाड़ी भाग ले रहे हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली गेम्स से खिलाड़ियों को अपने हुनर दिखाने का प्लेटफॉर्म मिला है लेकिन नियमों की धज्जियां कैसे उड़ाई जाती है समरफील्ड स्कूल में आयोजित किक बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में साफ देखने को मिला। फाइनल दिवस पर आयोजन समिति प्रमुख अनिल कुमार शर्मा, कम्पीट मार्शल आर्ट्स पत्रिका के संपादक और मार्शल आर्ट्स खेलों के विशेषज्ञ संजीव कुमार और इन खेलों में बड़ी पहचान रखने वाले भोला के सी ने माना है कि चैम्पियनशिप में नियमों का मजाक उड़ा। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि विश्व स्तर पर मार्शल आर्ट्स खेलों को सर्वमान्य नियमों में नहीं बांधा गया है। यही कारण है कि किक बॉक्सिंग में जूडो, कराटे, तायक्वांडो, जिजुत्सू और अन्य मार्शल आर्ट्स से जुड़े खिलाड़ी भाग लेते देखे गए। लेकिन छोटी उम्र के खिलाड़ियों के माता-पिता की राय में उनका मकसद अपने बच्चों के अंदर के खिलाड़ी को जगाना और उसे जिंदा रखना है। मौके पर मौजूद माताओं – नेहा भारद्वाज, रजनी सेठी, गुरियांस और अन्य ने माना कि उन्हें नियमों की बजाय बच्चों की फिटनेस की चिंता है और सभी के बच्चें किक बॉक्सिंग क़े साथ साथ तायक्वांडो और अन्य खेलों में भी भाग लेते हैं।
अनिल शर्मा, संजीव कुमार और भोला ने माना कि भोले-भाले बच्चों को सही दिशा नहीं मिल रही है। यही कारण है कि ज्यादातर मार्शल आर्टस खेलों में भारतीय प्रदर्शन बद से बदतर रहा है। हैरानी वाली बात यह है कि कुछ एक को छोड़ बाकी को एशियाड, ओलम्पिक और विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है। फिर भी दिल्ली खेलों में आधे से ज्यादा खिलाड़ी मार्शल आर्टस से जुड़े थे। खिलाड़ियों के माता-पिता अपने बच्चों को फिजिकली और मेंटली मजबूत बनाना चाहते हैं इसलिए सुविधानुसार खेलों को चुनते हैं।
अनिल शर्मा के अनुसार, 50 से अधिक वर्गों में 250 खिलाड़ी रिंग में उतरे। यह भी पता चला है कि प्रति खिलाड़ी 500 से 800 या कोच और आयोजकों की सुविधानुसार चार्ज किया गया। डीओए का दावा है 11000 से अधिक खिलाड़ियों ने भाग लिया, जिनमें से सबसे ज्यादा मार्शल आर्टस खेलों से जुड़े हैं। अर्थात मार्शल आर्ट्स खेलों ने आयोजकों की लाज बचा ली l
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Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |