स्वर्ण विजेता टीम को उमा भारती ने कैसे दिया तोहफा!

womens hockey team cwg 2002

कॉमनवेल्थ खेलों में भाग लेने गई भारतीय महिला हॉकी टीम से भारतीय हॉकी प्रेमियों को इस बार कुछ ज्यादा ही भरोसा है। इसलिए क्योंकि लगभग साल भर पहले इस टीम ने ओलम्पिक में शानदार प्रदर्शन कर चौथा स्थान अर्जित किया था, जोकि ओलंम्पिक में महिला टीम का श्रेष्ठ प्रदर्शन है। लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों के चश्मे से देखें तो इस टीम को अभी काफी कुछ साबित करना है। इसलिए चूँकि कॉमनवेल्थ खेलों में महिला टीम का रिकार्ड पुरुषों से भी बेहतर रहा है।

हॉकी प्रेमी जानते ही होंगे कि भारतीय लड़कियों ने मैनचेस्टर के 2002 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अभूतपूर्व रिकार्ड बनाया था। यह एकमात्र ऐसा मौका है जब भारतीय महिला टीम ने स्वर्ण पदक जीता। इस जीत के साथ एक यादगार कहानी भी जुडी है। तब उमा भारती देश की खेल मंत्री थीं और महिला टीम के प्रदर्शन का ऐसे बखान कर रही थीं जैसे कि वह खुद चैम्पियन बनी हों।

उमा जी का उत्साह देखते ही बन रहा था। शास्त्री भवन में बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस बुला कर महिला खिलाडियों का यशगान किया गया ,उन्हें सर माथे बैठाया गया लेकिन जब उन्होंने टीम को दो लाख की पुरस्कार राशि देने की घोषणा की तो मुझसे नहीं रहा गया। 25 खिलाडियों और टीम स्टाफ में यह रकम बांटना ऊंट के मुंह में जीरे सामान था। खैर , खेल मंत्री ने पूरी बात को ध्यान से सुना और उसी शाम सरकार के तमाम बड़े नेताओं, मीडिया और कॉमनवेल्थ के पदक विजेताओं के समक्ष कह दिया कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने हॉकी टीम के सभी सदस्यों को दो दो लाख देना स्वीकार किया है। इसके साथ ही टीम खिलाड़ियों को इनामी रकम देने की परंपरा भी शुरू हो गई।

एक मात्र स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम की कप्तान सूरज लता देवी थीं, जिसमे सीता गोसाईं, प्रीतम ठाकरान शिवाच, मनजिंदर कौर, अमनदीप कौर, सुमरई टेटे, सुमन बाला, कांति बा, टिन्गोलिमा, हेलन मेरी,
ममता खरब, अंजलि, ज्योति कुल्लू, सबा अंजुम शामिल थीं। एक बड़ी जीत ने इन सभी खिलाडियों को घर घर में लोकप्रिय बना दिया था। हर खिलाडी अपनी पोजीशन पर अव्वल थी। मेजबान इंग्लैण्ड को खिताबी मुकाबले में उसी के घर और दर्शकों के आगे पीटने का करिश्मा करने वाली टीम के हर खिलाडी को बड़ी पहचान मिली। पूरे देश ने खेल मंत्री और प्रधान मंत्री की खेल भावना को भी जम कर सराहा था।

स्वर्ण विजेता टीम की तुलना में आज की लड़कियों को भले ही बेहतर सुविधाएँ मिल रही हैं, उन्हें विदेशी कोच ट्रेनिंग दे रहे हैं लेकिन उनकी पहचान बीस साल पहले की चैम्पियन टीम जैसी कदापि नहीं है। लेकिन यदि इस बार भारतीय लड़किया बड़ा कमाल करती हैं तो खुद ब खुद बड़े सम्मान की हकदार बन सकती हैं। ध्यान देने वाली बात यह है की भारतीय पुरुष टीम आज तक कॉमनवेल्थ में सोना नहीं जीत पाई है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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