भारतीय फुटबाल के लिए क्रोएशिया का सबक

Croatia is the power house of football

क्रोएशिया एक ऐसा देश है जिसकी आबादी गुजरात के सूरत शहर से भी कम है लेकिन उसकी एक चौथाई आबादी फुटबाल खेलती है और लगभग सभी का पसंदीदा खेल फुटबाल है। यह देश कैसे फुटबाल की बड़ी ताकत बना इस बारे में उसके कुछ फुटबाल दिग्गजों से जानते हैं, जोकि हाल फिलहाल भारत दौरे पर हैं। इंडो यूरोप स्पोर्ट्स एंड लेजर काउन्सिल के आमंत्रण पर भारत दौरे पर आए क्रोएशियन फुटबाल के अधिकारी और कोचों ने अपने देश की फुटबाल के बारे में ऐसा बहुत कुछ बताया, जोकि भारतीय फुटबाल के लिए सबक हो सकता है। देश के सीनियर डिवीज़न क्लब एन के इस्त्रा के अध्यक्ष ब्रैंको डेवीदे, डारेक्टर डार्को पोडनर और कोचिंग एन्ड डेवलपमेंट डारेक्टर माइकल लाउजुरिका ने कुछ सवालों के जवाब देते हुए बताया कि कैसे उनका देश वर्ल्ड फुटबाल में एक बड़ा नाम बन कर उभरा है। एन के इस्त्रा क्लब के पदाधिकारी इंडो यूरोप काउन्सिल के चेयरमैन वसीम अल्वी के विशेष आमंत्रण पर भारत आये हैं।

क्रोएशियन फुटबाल के शीर्ष अधिकारीयों ने राजधानी के आंबेडकर स्टेडियम में एक दिवसीय फ्री क्लिनिक में सौ से अधिक खिलाडियों को अत्याधुनिक तकनीक सिखाई। इस अवसर पर काउन्सिल के चेयरमैन अल्वी और कार्यकारी निदेशक ड्रोन भारद्वाज भी मौजूद थे।

एक विशेष साक्षात्कार में श्री ब्रैंको ने अपने देश की फुटबाल की प्रगति के बारे में कहा कि क्रोएशिया में हर बच्चा फुटबॉलर बनने का सपना देखता है जिसे साकार करने के लिए वह पांच साल कि उम्र से ही गंभीर हो जाता है। माता पिता के सहयोग और स्कूल में पढाई के साथ साथ फुटबाल का ज्ञान दिया जाना अच्छे खिलाडी बनने कि दिशा में बड़े प्रयास हैं। ब्रैंको कहते हैं कि 25 जून 1991 को जब क्रोएशिया स्वतंत्र देश बना तो उसने फुटबाल में बड़ी ताकत बनने का सपना भी संजो लिया था। इसी ज़िद्द ने मात्र 40 लाख की आबादी वाले देश को पिछले विश्व कप के फाइनल तक पहुँचाया है। उनका देश पांच विश्व कप खेल चुका है, जोकि गर्व करने वाला प्रदर्शन कहा जा सकता है।

इधर भारत महान ने 1947 में आज़ादी मिलने के बाद कुछ एक सालों तक फुटबाल में उम्मीद जगाई लेकिन पिछले पचास सालों में भारतीय फुटबाल की हवा फुस्स हो चुकी है। कोचिंग डारेक्टर माइकल ने क्लिनिक में भाग लेने वाले खिलाडियों की फिटनेस और खेल को देख कर हैरानी जतलाई। उनके अनुसार भारतीय फुटबाल की बुनियाद बेहद कमजोर है और अधिकांश बच्चे अच्छे फुटबॉलर बनने की उम्र बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। माइकल ने ग्रास रूट और क्लब फुटबाल के स्तर को सुधारने की जरुरत बताई । उनके अनुसार क्रोएशिया में डेढ़ हज़ार बड़े फुटबाल क्लब हैं और जनसँख्या को देखते हुए भारत में कमसे कम 15 लाख क्लब होने चाहिए। लेकिन जब उन्हें बताया गया कि भारत में स्तरीय क्लबों की संख्या पांच सौ से भी कम है तो उन्हें भारतीय फुटबाल कि बर्बादी का कारण समझ आ गया।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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