भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील क्षेत्री वर्ल्ड कप 2026 के अगले क्वालीफायर्स के लिए कमर कस रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि भारतीय फुटबॉलर इस बार बेहतर प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि उनको तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिला है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुनील क्षेत्री कई सालों से भारतीय फुटबॉल की जान रहे हैं। यदि कहीं भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया है तो उसमें उनका योगदान बढ़-चढ़ कर रहा है। यह भी सच है कि बाईचुंग भूटिया के संन्यास के बाद सुनील ने फ्रंट से देश की टीम का नेतृत्व किया है और जब कभी जरूरत पड़ी तो गोल जमाकर भारतीय फुटबॉल को जिंदा रखने का प्रयास भी किया है। लेकिन हर खिलाड़ी के मैदान पर डटे रहने की सीमा होती है और क्षेत्री शायद उस सीमा को पार कर चुके हैं। भले ही विदेशी कोच और अखिल भारतीय फुटबॉलफेडरेशन(एआईएफएफ) क्षेत्री की आड़ में अपनी दुकान चलाते रहें, लेकिन अब वक्त हो गया है। क्षेत्री को अब खुद ही अपने भविष्य को लेकर राय बना लेनी चाहिए। यही उनके हित में रहेगा।
एक ना एक दिन हर खिलाड़ी को मैदान से हटना पड़ता है। यदि वह समय रहते इस सच्चाई को समझ जाए और सही फैसला ले, तो उनका मान-सम्मान हमेशा बना रहेगा। चूंकि वह अपना श्रेष्ठ दे चुके हैं इसलिए उन्हें भी संन्यास लेकर किसी और भूमिका में भारतीय फुटबॉल की सेवा करनी चाहिए, ऐसा अधिकतर फुटबॉल प्रेमियों का मानना है।
लगातार 12 मैचों में अजेय रहने का रिकॉर्ड ढह चुका है। इस बीच बेहद कमजोर टीमें भी भारत को पीट चुकी हैं। अब आलम यह है कि हार-दर-हार से फीफा रैंकिंग भी गिर रही है। भारतीय फुटबॉल के लिए यह गौरव की बात है कि क्षेत्री को लियोनेल मेस्सी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो के समकक्ष आंका गया। इन तीनों को दुनिया भर में गोल करने की कलाकारी के लिए जाना पहचाना जाता है लेकिन क्षेत्री उनके जैसा कदापि नहीं है। क्षेत्री ने फिसड्डी टीमों के खिलाफ ज्यादा गोल जमाए हैं, क्योंकि उन्हें बड़ी टीमों के खिलाफ खेलने के मौके नसीब नहीं हुए।
एशियाड और मर्डेका कप को देखें तो भारतीय फुटबॉल टीम ने शर्मनाक प्रदर्शन किया। भले ही क्षेत्री मैदान पर डटे रहे लेकिन अब किसी और खिलाड़ी को मौका देना होगा। हालांकि उनके जैसा प्रतिभावान कोई नजर नहीं आता लेकिन विकल्प तो खोजना ही पड़ेगा। आखिर कब तक एक खिलाड़ी भारतीय फुटबॉल की लाश ढोता रहेगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |