हॉकी में एक और नियम बदल गया है। पेनल्टी कार्नर के चलते सुरक्षा उपकरणों के पहनने उतारने को लेकर नया नियम अस्तित्व में आया है। इस प्रकार पिछले पांच दशकों में लगभग सौ से अधिक बार खेल के नियमों से छेड़ छाड़ की जा चुकी है। हालाँकि विश्व हॉकी को संचालित करने वाली एफआईएच कह रही है कि नए नियम से खिलाडियों कि सुरक्षा बढ़ेगी लेकिन सालो साल बदले जा रहे नियमों के कारण खेल को हास्यास्पद बनाना कहाँ तक ठीक है?
कुछ पूर्व खिलाडियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय हॉकी आज काफी हद तक बदल चुकी है| मैदान से लेकर खिलाडियों की पोशाक, हॉकी स्टिक और उनके द्वारा धारण किए जाने वाले उपकरण लगातार बदल रहे हैं, जिसका फायदा यूरोपीय देशों को मिल रहा है । 1975 के क्वालालम्पुर विश्व कप तक हॉकी घास के मैदानों में खेली जा रही थी। लेकिन साल भर बाद मांट्रियल ओलम्पिक में नए मैदान के साथ बदले हुए नियम लागु किए गए और इसके साथ ही एशियाई हॉकी के पतन कि कहानी भी शुरू हो गई।
एस्ट्रो टर्फ अर्थात नकली घास के मैदान पर खेली जाने वाली हॉकी के चलन में आने का सबसे बुरा असर भारत और पकिस्तान कि हॉकी पर पड़ा। जो देश खेल में बेताज बादशाह माने जाते थे उनका ग्राफ गिरता चला गया। आज आलम यह है कि भारत और पकिस्तान विश्व हॉकी में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं बेशक, नियमों में बदलाव के कारण ऐसा हुआ है। फ्री फार आल वाली हॉकी ने खेल को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। कितने नियम बदले गिनती आसान नहीं है लेकिन खेल का आकर्षण घटा है।
आज की हॉकी पर सरसरी नज़र डालें तो यह खेल फ़ुटबाल जैसा बन गया है, जिसमें कलात्मकता कि बजाय रफ टफ खेल ज्यादा कारगर नजर आता है। मारो, भागो, प्रतिद्वंद्वी को पीठ दिखाओ और हॉकी स्टिक का लाठी कि तरह का प्रयोग हो रहा है। हॉकी के श्रेष्ठ खेल राष्ट्रों पर सरसरी नज़र डालें तो बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिआ, जर्मनी. हालैंड, इंग्लैण्ड, स्पेन, अर्जेंटीना, पोलैंड, फ़्रांस आदि देश हॉकी में बड़ी ताकत बन कर उभरे हैं जोकि फ़ुटबाल में ऊंचा मुकाम रखते हैं।
चूँकि हॉकी में कलात्मकता का स्थान घटा है और खिलाडी कलाई की बजाय मजबूत कदकाठी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं इसलिए यूरोप ने खेल पर दबदबा बना लिया है, ऐसा पूर्व ओलम्पियनों का मानना है। पूर्व खिलाडियों के अनुसार भारत को फिर से हॉकी में श्रेष्ठता दर्ज करनी है तो सबसे पहले नए और बदले नियमों के अनुरूप ढलने की जरूरत है। साथ ही इस बात पर भी गौर करना होगा कि एशियाई देशों कि हालत कैसी है। पकिस्तान, कोरिया, चीन, मलेशिया और जापान जैसे देश आगे बढ़ेंगे तो एशियाई हॉकी मजबूत होगी। साथ ही लगातार हो रहे नियम परिवर्तनों को भी गंभीरता से लेने कि जरुरत है।
भारतीय हॉकी कि गहरी समझ रखने वाले टोक्यो ओलम्पिक में जीते कांसे के पदक को काफी नहीं मानते। उनके अनुसार भारत यदि अगले दो तीन ओलम्पिक तक फार्म बनाए रख पता है और लगातार पदक तालिका में बना रहता है तो भविष्य के बारे में ठोस राय बनाई जा सकती है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |