दुनिया की जनसंख्या में सबसे ज्यादा योगदान देने वाला भारत खेलों में सबसे पिछड़ा क्यों है? यह सवाल बार-बार और लगातार पूछा जाता रहा है और हर बार हमारे खेल नीति निर्माता, खेल मंत्रालय, आईओए और खेल महासंघ साधन सुविधाओं की कमी, गंभीरता की कमी, दयनीय खेल ढांचा और अभिभावकों का उदासीन रवैया जैसे आरोप लगाकर और बहाने बनाकर उस सच्चाई को दबा देते हैं, जिसके चलते हम खेलों में लगातार शर्मसार हो रहे हैं। जी हां, उम्र की धोखाधड़ी ऐसी बीमारी है, जिसने भारतीय खेलों की हत्या की है। लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि हमारे खेल आका और खेल महासंघों के धूर्त पदाधिकारियों को आज तक यह बुराई नजर नहीं आई। कमाल देखिये कि खेल महासंघ और अन्य इकाइयां भी ‘एज फ्रॉड’ के कैंसर को ढोते जा रहे हैं।
हाल ही में लक्ष्य सेन और उनके छोटे भाई चिराग सेन पर उम्र घटाने का आरोप कोर्ट के सामने आया, जिसकी फिलहाल जांच चल रही है। शिकायत दर्ज करने वाले के अनुसार, उनकी उम्र सर्टिफिकेट में ढाई साल कम करके दिखाई गई हैं। दोनों नामी खिलाड़ी हैं लेकिन बैडमिंटन में उम्र घटाने के मामले भरे पड़े हैं। इसी प्रकार हॉकी, फुटबॉल, कुश्ती, कबड्डी, क्रिकेट, मुक्केबाजी, एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, जूडो सहित तमाम मार्शल आर्ट्स खेलों, तीरंदाजी आदि में चार-पांच साल बड़े खिलाड़ी खेल रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताएं जीत रहे हैं। लेकिन यही खिलाड़ी जब छोटी उम्र के खिलाड़ियों को कुचलते हुए अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में उतरते हैं तो देश का नाम खराब करते हैं।
बड़ी उम्र के खिलाड़ी छोटों पर रौब गांठ कर और खेल महासंघों के भ्रष्टाचार से हाथ मिलाकर एशियाड, ओलम्पिक तक पहुंच जाते हैं पर नाकामी ही उनका पुरस्कार होती है। खेल मंत्रालय और सरकार चाहे तो टॉप्स स्कीम से निकाले गए कुछ नाकाम खिलाड़ियों के रिकॉर्ड खंगाल सकती है।
कुछ पूर्व चैंपियनों के अनुसार, बड़े और धोखेबाज खिलाड़ी प्रतिभाओं के सबसे बड़े दुश्मन हैं। यही कारण है कि 150 करोड़ की आबादी वाले देश के फिलहाल एक भी करंट ओलम्पिक चैम्पियन नहीं हैं। यदि उम्र की धोखाधड़ी पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले सालों में 6-7 ओलम्पिक पदक जीतने के लाले पड़ सकते हैं।
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Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |