जंतर मंतर पर आंदोलनकारी पहलवान जिस इरादे और आक्रोश के साथ बैठे थे , उसकी भावना भले ही जिन्दा हो लेकिन लड़ने भिड़ने की भी सीमा होती है और देश के नामी पहलवान शायद डेड लाइन के आस पास संघर्ष करते नज़र आने लगे हैं । भले ही रोज कई नामवर नेता सांसद , खाप और पंचायतों के दिग्गज पहलवानों को सपोर्ट करने आगे आ रहे हैं और आखिर तक पहलवानों का साथ देने की बात कर रहे हैं लेकिन भारतीय खेल जगत का सबसे बड़ा आंदोलन शायद भटकाव के दौर से गुजरने लगा है ।
कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह जैसा चाहते थे शायद आंदोलन को अपने हिसाब से मोड़ने तोड़ने में उन्हें कामयाबी मिल गई है । महिला महलवानों के यौन शोषण से घिरे नेताजी की नेता गिरी रंग लाने लगी है और आंदोलन में सेंध लगाने में सफल रहे हैं । पहलवान बाहरी जगत का साथ पाने के बाद भी अपने अध्यक्ष को जेल की सलाखों के पीछे नहीं भेज पा रहे । सीधा सा मतलब है कि या तो पहलवानों का आंदोलन भटक गया है जिसमें कई अनवांटेड घुसपैठिए बड़ी भूमिका निभा रहे हैं । यह भी संभव है कि पहलवान हारी बाजी को बस जैसे तैसे जीवंत रखना चाहते हैं । लेकिन कब तक ?
यह सही है कि लड़ाई जितनी लम्बी खिंचेगी, असली मकसद पीछे हटता जाएगा । पहली बार जब आंदोलनकारी जंतर मंतर पहुंचे थे तो शायद उन्होंने यह सोच होगा कि दो चार दिन में ब्रज भूषण आत्मसमपर्ण कर देंगे और उनकी जीत का डंका बज जाएगा । लेकिन सर्वोच्च न्यायलय के फैसले और पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज कर दिए जाने के बावजूद भी पहलवान आज भी वहीं खड़े हैं जहां से शुरुआत की थी या यूँ भी कह सकते हैं कि काफी हद तक पीछे हैट चुके है और उन्हें न्याय मिलता नज़र भी नहीं आ रहा । ऐसे में पहलवानों की मांगों और उनकी ऐतिहासिक कही जा रही लड़ाई का क्या होगा ?
अब तक के घटनाक्रम पर सरसरी नज़र डालें तो जांच के लिए बनाई गई कमेटियां बेदम साबित हुई हैं ।पीटी उषा और मैरीकॉम से महिलाओं की मदद करते नहीं बन पाया । उन्हें देश भर की महिला खिलाडी कोस रही हैं लेकिन ब्रज भूषण के समर्थकों में उनका मान सम्मान बढ़ा है । ब्रज भूषण के अपने कह रहे हैं कि यह लड़ाई फोगाट परिवार और ब्रज भूषण के बीच की बन गई है , हालाँकि बबीता फोगाट , मज़बूरी के चलते अपनी बहनों का साथ दिखावे के रूप में दे रही है ।
देश के खेल प्रेमियों और कुश्ती प्रेमियों से पूछें तो आंदोलन को देश के राजनीतिक दलों ने हैक कर लिया है विपक्ष आंदोलनकारियों साथ है तो सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि उसकी मंशा खिलाडियों को दबाने, कुचलने की है क्योंकि ब्रज भूषण उनका अपना आदमी है । सवाल यह पैदा होता है कि दिशा हीन और टूटे मनोबल वाल आंदोलन कब तक टिक पाएगा !
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |