भारतीय मुक्केबाजी फेडरेशन (बीएफआई) में चल रहे घमासान से बेपरवाह भारतीय मुक्केबाजों ने ब्राजील में आयोजित वर्ल्ड बॉक्सिंग कप में एक स्वर्ण सहित छह पदक जीतकर यह साबित कर दिया है कि सत्ता के भूखे और वर्षों से भारतीय मुक्केबाजी को लूटने वाले भले ही घटिया हरकतों पर उतर आएं लेकिन भारतीय मुक्के पूरी तरह से कुंद नहीं हुए हैं। 70 किलो वर्ग में हितेश पहला भारतीय मुक्केबाज है, जिसने वर्ल्ड बॉक्सिंग कप में गोल्ड जीता है। पेरिस ओलम्पिक के बाद भारतीय दल का यह प्रदर्शन चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन चर्चा इस बात की भी है कि विभिन्न आयु वर्गों के घरेलू, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय आयोजन में हमारे उभरते मुक्केबाज उम्र की धोखाधड़ी का खेल बखूबी खेल रहे हैं।
ब्राजील वर्ल्ड कप में दमदार प्रदर्शन करने वाले मुक्केबाजों को ओलम्पिक 2028 की उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि फेडरेशन के सिर फुटव्वल के चलते एक अंतरिम कमेटी का गठन किया गया है, जो कि देश-विदेश में भारतीय मुक्केबाजों के प्रदर्शन पर पैनी नजर रखेगी। बीएफआई सचिव और कोषाध्यक्ष को टर्मिनेट किया जा चुका है लेकिन गतिविधियां जारी रहेंगी ताकि आगामी एशियाड और ओलम्पिक जैसे आयोजनों में हमारे मुक्केबाज अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। इस बीच मुक्केबाजी को निरंतर जारी रखने और भविष्य के चैम्पियनों को तैयारी के मौके उपलब्ध कराने के लिए 15 और 17 साल तक के मुक्केबाजी चैम्पियनशिप आयोजित करने के बड़े स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। 15 और 17 साल तक के क्रमश: 30 और 26 लड़के-लड़कियों का चयन किया गया है, जिन्हें 2036 की ओलम्पिक उम्मीद बताया जा रहा है।
हालांकि अगले दस सालों में काफी कुछ उठा-पटक हो सकता है लेकिन देश में मुक्केबाजी के जानकार, ओलिंपियन, द्रोणाचार्य अवार्डी और अर्जुन अवार्डी विभिन्न आयु वर्ग के मुक्केबाजों की उम्र को लेकर आश्वस्त नहीं है। ज्यादातर ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त माना कि उनके खेल में उम्र का फर्जीवाड़ा जोर-शोर से चल रहा है। क्योंकि फेडरेशन में अवसरवादी और भ्रष्ट जमे बैठे हैं इसलिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है। यहां तक दावा किया जा रहा है कि साठ से सत्तर फीसदी मुक्केबाजों को शक की नज़र से देखा जाता है l खासकर नार्थ औऱ नार्थ ईस्ट क़े मुक्केबाज उम्र की धोखाधड़ी क़े लिए कुख्यात रहे हैँ l
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Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |