जो दिखता है, इसलिए बिकता है

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यूँ तो भारत में हर दिन क्रिकेट का दिन होता है। मीडिया के तमाम माध्यम क्रिकेट के खबरों से पटे रहते हैं। अगर कहीं भारतीय टीम की जीत की खबर हो तो समाचार पत्रों के मुख्य पेज से खेल पेज तक सब कुछ क्रिकेट मय हो जाता है। लेकिन जब आईपीएल का जादू सर चढ़ कर बोलता है तो बाकी खेलों का दिल जोर जोर से डोलता है।

ईश्वर आईपीएल की बोली बोलने वाले हघ एडमीड्स को लम्बी उम्र दे और उनका स्वास्थ्य शीघ्र ठीक हो जाए लेकिन बहुत से लोग कह रहे हैं कि करोड़ों में बिक रहे अनजान खिलाडियों के नाम लेते लेते उनके दिल की धड़कन बढ़ गई थी और गिर पड़े। हालाँकि वह पेशेवर हैं लेकिन करोड़ों में हो रही खिलाडियों की खरीद फरोख्त किसी को भी हैरान कर सकती है। खासकर, इसान किशन, आवेश खान, शाहरुख़ खान, राहुल तेवतिया, राहुल तिवारी, शिवम को सात से दस करोड़ में खरीदा जाना ऐतिहासिक लेकिन अविश्वसनीय लगा।

क्रिकेट खिलाडियों कि नीलामी का मंजर जिस किसी ने देखा उनमें से ज्यादातर के दिल दिमाग में एक बात जरूर आई होगी कि अपनी भावी पीढ़ी को क्रिकेट खिलाडी बनाना क्यों सही फैसला है। यह भी सही है कि अन्य खेलों की तरह क्रिकेट में नाम सम्मान कमाना भी कम मुश्किल नहीं है। आज जो खिलाडी करोड़ों में बिक रहे हैं उनकी कामयाबी कोई रातों रात नहीं आई। आई पीएल में उतरने से पहले उन्होंने जो मेहनत की है उसके बारे में उनके माता पिता और खुद खिलाडी ही बता सकता है।

क्रिकेट को बुरा भला कहने वालों ने यह तो जान ही लिया होगा कि इस खेल ने हॉकी, फुटबाल, टेनिस, बैडमिंटन, एथलेटिक, बास्केटबाल आदि खेलों से ज्यादा तरक्की कैसे की है। उन्हें यह भी पता चल गया होगा कि क्यों क्रिकेट बाकी खेलों द्वारा की जा रही आलोचना की परवाह नहीं करता ! हर बार की तरह इस बार के संस्करण में खिलाडियों की बिक्री बाकी खेलों को मुंह चिढ़ाने जैसी रही है।

क्रिकेट का कारवाँ आगे बढ़ता जा रहा है। हर साल खिलाडियों को बेहतर दाम मिल रहे हैं। नब्बे से सौ करोड़ की टीमें खूब कमा रही है तो खिलाडियों, सपोर्ट स्टाफ और खेल से जुड़े हर एक को मोटा मुनाफा मिल रहा है। दूसरी तरफ बाकी खेल हैं जिनकी लीग या तो दम तोड़ चुकी हैं या घिसट घिसट कर चल रही हैं। हॉकी, कुश्ती, मुक्केबाजी, टेनिस और अन्य खेलों के लीग आयोजन का बजट आईपीएल की किसी टीम से भी कमतर होता है। ज़ाहिर है जो खेल खिलाडियों क्रिकेट बोर्ड, अभिभावकों और तमाम की उम्मीदों पर खरा उतर रहा है तो फिर कोई किसी और खेल को क्यों अपनाने लगा!

भले ही हर खिलाडी भाग्यशाली नहीं होता लेकिन जो खेल अपने खिलाडियों को सुरक्षित भविष्य दे रहा है उसके चाहने वालों और उसे गले लगाने वालों की तादात तो बढ़ेगी ही। शायद यही कारण है की हर बच्चा और उसके मां बाप क्रिकेट की दौड़ में शामिल हैं और बाकी खेलों से जुड़ना इत्तफाकन ही होता है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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