बलबीर थे भारत रत्न के असली हकदार!

rajiv kumar 93

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मेजर ध्यानचंद हॉकी के महानतम खिलाड़ी थे लेकिन कभी कभार यह भी सुनाई पड़ता है कि उनके छोटे भाई रूप सिंह भी कमतर नहीं थे। आजादी बाद के सालों में यदि कोई महानतम खिलाड़ी रहा है तो निसंदेह बलबीर सिंह सीनियर थे। लेकिन जब यह पूछा जाता है कि सर्वकालिक श्रेष्ठ कौन सा भारतीय खिलाड़ी रहा है तो तपाक से जवाब मिलेगा, ‘द्ददा-ध्यानचंद’। ऐसा इसलिए क्योंकि बलबीर को ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया।
हालांकि पिछले साथ सत्तर सालों में हॉकी का रूप स्वरूप बहुत हद तक बदल चुका है और यह भी सच है कि ध्यानचंद काल में हॉकी खेलने वाले देशों की संख्या बहुत कम थी। तब भारतीय हॉकी की परेशानियां भी बड़ी थीं। जितने भी देश हॉकी खेलते थे उनमें भारत का दर्जा बहुत बड़ा था। इसलिए क्योंकि हमारे पास ध्यानचंद और रूप सिंह जैसे दिग्गज थे जिन्हें सर्वकालीन महान गिना जाता है।
बेशक, आजादी बाद की भारतीय टीमों में वे जांबाज शामिल नहीं थे, जो कि बंटवारे के चलते पाकिस्तान चले गए थे। फिर भी भारत ने लगातार चार ओलम्पिक गोल्ड जीतकर यह दिखा दिया कि देश में चैंपियन खिलाड़ियों की कमी नहीं। लेकिन पहले तीन ओलम्पिक में हीरो जैसा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी थे पंजाब के बलबीर सिंह सीनियर। उनके खेल कौशल को देखकर हॉकी जगत बोल उठा था, “भारतीय हॉकी को ध्यानचंद का उत्तराधिकारी मिल गया है।” 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक फाइनल में भारत ने नीदरलैंड को 6-1 से हराकर खिताब अपने नाम किया था, जिसमें अकेले बलबीर सिंह ने पांच गोल किए और दुनिया भर के समाचार पत्रों में बलबीर सिंह को ध्यानचंद का उत्तराधिकारी आंका गया। बलबीर सिंह 1948 के लंदन ओलम्पिक, 1952 के हेलसिंकी और अंतत: 1956 में मेलबर्न ओलम्पिक में भारत के सुपर स्टार और मैच विनर बनकर उभरे। उनकी कप्तानी में जब भारत तीसरी बार ओलम्पिक खिताब जीतने में सफल हुआ तो कुछ मीडिया कर्मियों ने उन्हें महानतम करार दिया। उन्हें बड़े से बड़ा राष्ट्रीय सम्मान देने की मांग की गई लेकिन दुर्भाग्य इस देश का, कि आजाद भारत के महानतम नायक को कभी भारत रत्न के लायक नहीं समझा गया।
सचिन को सबसे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान मिल गया। ध्यानचंद के लिए कई दशकों से भारत रत्न की मांग की जाती रही है। तो फिर बलबीर सिंह क्यों नहीं? यह न भूलें कि बलबीर आधुनिक ओलम्पिक के 16 शीर्ष खिलाड़ियों में शुमार होने वाले इकलौते भारतीय हैं। 1957 में पद्मश्री देकर सरकारों ने अपना दायित्व पूरा मान लिया। मेजर ध्यानचंद के लिए आज भी भारत रत्न की मांगा जा रहा है लेकिन 25 मई 2020 को 96 साल की उम्र में स्वर्ग सिधारने वाले नेक इंसान और महान हॉकी खिलाड़ी के लिए किसी ने गंभीरता के साथ आवाज नहीं उठाई। भारतीय हॉकी के कर्णधार भी मौन साधे रहे। ऐसा क्यों?

Rajendar Sajwan

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *