महिला खिलाड़ियों के लिए बुरा वक्त!

Bad time for women players

पिछले कुछ सालों में भारतीय खेलों की प्रगति से देश में खेलों का जो माहौल ऊंचाई तक उठता नज़र आ रहा था उसका ग्राफ यकायक गिरने क्यों लगा है और क्यों खेलों के प्रति माता पिता की सोच में बदलाव आ रहा है ? एक सर्वे से एक बेहद चौंकाने वाला निष्कर्ष सामने आया है , जिसे लेकर देश के खेल हलकों में असमंजस का माहौल बन रहा है । देश के कुछ जाने माने पत्रकारों और अभिभावकों से बात चीत के बाद जो तथ्य सामने आया है उसके आधार पर यह माना जा रहा है कि जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के धरना प्रदर्शन से दुनियाभर में भारत की छवि खराब हो रही है । कुश्ती fedreshan के अध्यक्ष और सांसद ब्रज भूषण शरण सिंह पर लगे आरोपों का झूठ सच जांच का विषय है लेकिन इस बीच भारतीय खेल यदि बहुत कुछ खो दें तो हैरानी नहीं होगी ।

इसमें दो राय नहीं कि पुरुष पहलवानों में सुशील कुमार , योगेश्वर दत्त , बजरंग पूनिया , रवि दहिया और महिलाओं में साक्षी मालिक के ओलम्पिक पदकों ने देश की शान बढ़ाई । उनकी कामयाबी देख सैकड़ों हजारों बालक बालिकाएं अखाड़ों की तरफ कुछ करने लगे थे और देखते ही देखते चैम्पियन पहलवानों की कतार लम्बी होती चली गई । अन्य खेलों में भी यही सब देखने को मिला । बैडमिंटन , मुक्केबाजी , फुटबाल, हॉकी , एथलेटिक , तैराकी , मार्शल आर्ट्स खेलों में भी बालकों के साथ बालिकाओं की तादात भी बढ़ती चली गई । केंद्र और राज्य सरकारों ने समय समय पर खिलाडियों को सुरक्षित भविष्य के नारे दिए । कुछ एक खिलाडियों को नौकरियाँ भी मिलीं । खासकर , खेतिहर ,मज़दूर और गरीब घरों की महिला खिलाडियों ने खेल में अपना भविष्य सुरक्षित मान लिया । लेकिन हाल के घटनाक्रम ne देश के खेल प्रेमी अभिभावकों को हिला कर रख दिया है ।

जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के समर्थन में पहुंचे नेता, सांसद, खिलाडी , खेल अधिकारी और अभिभावक बार बार कहते पाए गए कि ऐसी हालत में कौन अपनी बेटियों को खेलने भेजेगा |लेकिन सिर्फ कुश्ती में ऐसा नहीं है ,अन्य खेलों में भी अनेकों मामले सामने आए , कई एक ने आवाज उठाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई । भारतीय ओलम्पिक संघ के एक अधिकारी की ऐय्याशी सामने आई लेकिन उसे देश की भ्र्ष्ट व्यवस्था ने बचा लिया । तैराकी , तीरंदाजी , निशानेबाजी , हॉकी , फुटबाल और तमाम खेलों में भी महिला खिलाडियों के यौन शोषण के कई मामले दबाए जाते रहे हैं । हाँ, इतना ज़रूर है कि महिला पहलवानों का मामला ज्यादा गंभीर है और दुनिया भर में चर्चा का विषय बना है ।

बेशक, अपने अध्यक्ष पर आरोप लगा कर महिला पहलवानों ने साहस का काम किया है लेकिन सन्देश बेहद शर्मनाक गया है , जिसका असर भविष्य पर पड़ सकता है । यदि शीघ्र अति शीघ्र दूध का दूध नहीं हुआ तो हो सकता है खेल मैदानों में महिला खिलाडियों की उपस्थिति घाट जाए । खासकर कुश्ती बुरी तरह प्रभावित हो सकती है ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *