भारतीय तीरंदाजी की पहचान और भारत में तीर कमान के खेल को मान्यता दिलाने वाले लिम्बाराम वर्षों से गम्भीर बीमारी की चपेट में हैं। हालांकि लिम्बा को भारतीय खेलप्राधिकरण द्वारा नेहरू स्टेडियम में सह पत्नी रहने के लिए जगह मिली है और समय समय पर साई द्वारा उसे आर्थिक सहायता भी मिल रही है लेकिन उसकी पत्नी जेनी को इस बात का अफ़सोस है कि एक ओलम्पियन और विश्व रिकार्डधारी तीरंदाज को अपना परिचय देते समय चौकीदार और सुरक्षा स्टाफ के सामने तरले करने पड़ते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री पाने के बाद भी उसके पास ऐसा कोई पक्का प्रमाण नहीं है, जिससे खुद को साबित कर सके।
लिम्बा और जेनी चाहते हैं कि राष्ट्रीय खेल अवार्ड पाने वाले खिलाड़ियों और कोचों को सरकार द्वारा ऐसा कोई कार्ड दिया जाए, जिससे उनकी पहचान हो सके और सम्मान के साथ वे किसी अधिकारी, खेल मंत्रलय और अन्य मंत्रालयों में आ जा सकें। वरना हर ऐरा गैरा उनसे तरह तरह के सवाल करता है। लिम्बा की बीमारी को लेकर जेनी को डाक्टरों से मिलना होता है, मंत्रालयों के चक्कर काटने पडते हैं। लेकिन चूंकि लिम्बा के पास कोई परिचय पत्र नहीं है इसलिए उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता। खेल मंत्रालय में भी उनका प्रवेश जैसे वर्जित है। हाँ, रेलवे का पास जरूर है।
इस बारे में जब देश के जाने माने अर्जुन, द्रोणाचार्य, खेल रत्न, ध्यानचंद अवार्डियों से बात की गई तो सभी ने एकराय से माना कि यदि सरकार सचमुच खिलाड़ियों और कोचों का आदर सम्मान चाहती है तो उन्हें पहचान पत्र देने में परहेज क्यों? यह सही है कि अवार्डियों को पुरुस्कार राशि दी जाती है लेकिन भविष्य में जब उन्हें प्रमाण देना होता है तो बिना परिचय पत्र के खुद को साबित नहीं कर पाते।
कुश्ती द्रोणाचार्य महा सिंह राव, देश के जाने माने चैम्पियन पहलवान करतार सिंह, हॉकी की महानतम खिलाडी राजबीर कौर राय, ओलंपियन और अर्जुन अवार्डी राजीव तोमर,सुजीत मान की राय में न सिर्फ पहचान पत्र मिलने चाहिए अपितु सभी अवार्डियों और ओलम्पियनों को पेंशन भी दी जाए। हॉकी द्रोणाचार्य अजय कुमार बंसल कहते हैं कि सरकारों को अपनी भूल सुधारनी चाहिए। यदि किसी राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त खिलाड़ी को अपना परिचय देने के लिए गिड़गिड़ाना पड़े तो ऐसे अवार्ड का क्या फायदा! बंसल के अनुसार जो भी खिलाड़ी राष्ट्रीय कलर पहन लेता है, उसे पेंशन भी मिले| ठीक यही राय जूडो द्रोणाचार्य गुरचरण गोगी भी रखते हैं।
द्रोणाचार्य गुरचरण गोगी,हॉकी द्रोणाचार्य बलदेव सिंह, कुश्ती के द्रोणाचार्य राज सिंह, जगमिंदर, कबड्डी द्रोणाचार्य बलवान सिंह, तमाम अर्जुन अवार्ड प्राप्त खिलाड़ी भी पेंशन, सीजीएचएस सुविधा, और पहचान पत्र के मुद्दे पर एकराय हैं। लगभग सौ अर्जुन अवार्डियों और दर्जन भर द्रोणाचार्यों से बातचीत से पता चला कि उन्हें और अन्य अवार्डियों को पहचान पत्र जरूर दिया जाना चहिए और उन्हें भी पेंशन मिले जिनके पास मैडल नहीं है। इस बारे में अनेकों बार सरकार से गुहार लगाई जा चुकी है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। यह हाल तब है जबकि देश के नेता और सरकारें खिलाड़ियों की आड़ में अपने स्वार्थ साधते आ रहे हैं। नेता , सांसद पेंशन के हकदार हैं और खिलाडियों की कमाई पर वाह वाह लूट रहे हैं और खिलाडी ‘बेचारा’ बन कर रह गया है। ऐसा क्यों?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |