बहाने बाजी के लिए भले ही कोई गुंजाइश न हो लेकिन अव्वल दर्जे के बहानेबाज कोई न कोई बहाना खोज कर अपनी नाकामी को छिपाने से नहीं चूकते। टीम इंडिया को ही लें, हार गए फिरभी बहाने बनाने का कोई मौके नहीं चूक रहे। क्यों हारे, क्यों वर्ल्ड कप से बाहर हुए, असली कारणों और कमजोरियों पर पर्दा डालने के लिए अब सिक्के की आड़ ली जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि महत्वपूर्ण मैचों में विराट की टीम टॉस हार गई और मैच भी गँवान पड़ा। पकिस्तान और न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध खेले गए मैच इसलिए हारे क्योंकि टॉस हार गए, शायद टीम इंडिया का तर्क यह है।
इसे भारतीय क्रिकेट का दुर्भाग्य कहें या कुछ और कि टीम की जीत पर पागलपन की हद पार करने वाले भारतीय ज्ञान देवता पहले तो हार पर मातमी धुन बजाना शुर कर देते हैं । फिर यही भौंपू अलग राप अलापने लगते हैं। वर्ल्ड कप ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर निकल चुका है। पकिस्तान, इंग्लैण्ड, न्यूज़ीलैंड ने भी स्वीकार कर लिया है की श्रेष्ठ टीम की जीत हुई है। किसी ने भी यह नहीं कहा की टॉस ने ऑस्ट्रेलिआ को विजेता बनाया। जो टीम विशेष दिन पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल रही उसकी जीत हुई। तो फिर क्यों बार बार सिक्के को उछाला जा रहा है ? आखिर भारतीय क्रिकेट पंडित यह क्यों नहीं मान लेते कि बेस्ट की जीत हुई है।
भले ही पराजित और फिसड्डी टीम को सपोर्ट करने वाले और सिक्के पर खीज उतारने वाले कितना भी शोर मचाएं , टॉस की जगह कोई और बहाना बनाएं लेकिन इतना तय है की सिक्के का सिक्का हमेशा चलता रहेगा। आंकड़ेबाज कह रहे हैं की वर्ल्ड कप में खेले गए कुल मैचों में से नब्बे फीसदी का फैसला उस टीम के हक़ में गया जिसका सिक्के ने साथ दिया लेकिन यह सवाल तब ही क्यों उठाया जाता है जब भारतीय टीम हार जाती हैं? ज़ाहिर है चारों खाने चित पड़ी भारतीय टीम को सांत्वना देने वाले बहानेबाजी पर उतारू हैं । वे भूल रहे हैं की प्राय: सभी टीम खेलों में टॉस के आधार पर खेल शुरू होता है और शायद ही अन्य खेलों में कभी कोई विवाद हुआ हो!
हो सकता है की टॉस की जीत हार का मैच के रिजल्ट पर असर पड़ता हो और कुछ एक अवसरों पर ऐसा हुआ भी हो लेकिन वेस्ट इंडीज, ऑस्ट्रेलिआ ,इंग्लैण्ड आदि की बादशाहत में सिर्फ टॉस की ही भूमिका नहीं रही। भारतीय टीम ने भी टॉस हारने के बावजूद कई अवसरों पर खिताब जीते हैं।
अभी कुछ दिन पहले तक तमाम उपदेशक ज्ञान झाड़ रहे थे की आईपीएल टीम की हार का कारण रहा। खिलाडियों को भी बुरा भला कहा जा रहा था। अब अचानक टॉस का रोना कैसे शुरू हो गया? पते की बात यह है की आईसीसी की टूर्नामेंट टीम में एक भी भारतीय खिलाडी को स्थान नहीं मिल पाया है। इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है? गेंद बाजी, बल्लेबाजी, क्षेत्र रक्षण, कप्तानी और प्लानिंग में भारतीय टीम बेहद कमजोर रही। उसे अपना अहंकार और उपदेशकों का ज्ञान भारी पड़ा। फिर रोज नये बहाने क्यों गढे जा रहे हैं?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |