तमाम फुटबॉल इकाइयों को सबक सिखाने की जरूरत

All football units deserve the same treatment

उस समय जबकि दुनिया के तमाम देश बेसब्री के साथ फ़ुटबाल महासंग्राम की प्रतीक्षा कर रहे हैं भारतीय फुटबाल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत है। इसलिए क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की फुटबाल का रक्षक ही भक्षक निकला। वह तो भारतीय फुटबाल को निगल जाना चाहता था, गनीमत है समय रहते देश के सर्वोच्च न्यायलय ने उसके शर्मनाक इरादों को भांप लिया और और जैसे तैसे फुटबाल को उसके हत्यारों के हाथ से बचा लिया है। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि जब भारतीय फुटबाल को संचालित करने वाली शीर्ष इकाई को भंग कर दिया गया है तो उसकी सदस्य इकाइयों को भी क्यों न भंग मान लिया जाए या उनकी नए सिरे से जांच पड़ताल हो और पुनः गठन किया जाए?

भारतीय फुटबाल की छोटी बड़ी इकाइयों से पूछें तो उनका रोना भी एआईएफएफ जैसा ही है। देश की लगभग सभी राज्य इकाइयों पर अवसरवादी और फुटबाल के हत्यारे बैठे हुए हैं। हाल ही में सबसे बड़े प्रदेश यूपी के कुछ फुटबाल प्रेमियों से पता चला है कि उनके राज्य में सबसे लोकप्रिय खेल के साथ भद्दा मज़ाक चल रहा है। नतीजन मामला खेल मंत्रालय और कोर्ट कचहरी तक पहुँच गया है। इसी प्रकार की स्थिति उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, हरयाणा, महाराष्ट्र, गोवा और अधिकांश प्रदेशों में है। उत्तराखंड का हाल यह है कि उसे उत्तर प्रदेश से अलग हुए बीस साल हो चुके हैं लेकिन राज्य की फुटबाल पर आज भी यूपी के बिगडैलों का राज चल रहा है। बहुत कम प्रदेश हैं जिनमें कोई सर्वमान्य एसोसिएशन फुटबाल का कारोबार कर रही हो।

चूँकि माननीय न्यायालय ने देश में फुटबाल से खिलवाड़ करने वाले लुटेरों के हाथों बचा लिया है इसलिए अब सभी राज्य इकाइयों ने कोर्ट के दरवाजे खटखटाने का मन बनाया है। लेकिन यह तरीका शायद बहुत बोझिल होगा। आखिर कबतक कोर्ट में इस प्रकार के मामले घसीटे जाते रहेंगे! भारतीय फुटबाल के कुछ दिग्गजों की राय में ऐसे में जबकि फेडरेशन को भंग कर दिया गया है तो उसकी सदस्य इकाइयों को भी नये सिरे से और लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव का निर्देश दिया जा सकता है। इसबारे में एक राय बना कर भारतीय फुटबाल के गले सड़े ढाँचे को फिर से मजबूती दी जा सकती है। यदि अब फुटबाल को नये सिरे से सजाने संवारने का काम नहीं हो पाया तो भविष्य में फिर कोई लुटेरा और कुर्सी का भूखा फुटबाल कि हवा निकाल सकता है।

यही मौका है जब पूरे भारत के फुटबाल प्रेमी और ईमानदार प्रशासक एकजुट होकर दुनिया के नंबर एक खेल के हित में आवाज बुलंद कर सकते हैं। वर्ना जियाउद्दीन, मुंशी और पटेल के बाद कोई और आक्रांता भारत में फुटबाल का नामो निशाँ मिटा सकता है। यह न भूलें कि आबादी की रेस में चीन को भी पीछे धकेलने के लिए प्रयासरत देश को विश्व फुटबाल में हेय नजरों से देखा जाता है। जो देश गरीबी और भुखमरी के दौर में एशियाई फुटबाल में बड़ी ताकत था और जिसने साधनों के आभाव के बावजूद भी ओलम्पिक में सराहनीय प्रदर्शन किया उसकी फुटबाल की अब खिल्ली उड़ाई जाती है।

कोर्ट ने भारत में फुटबाल को जिन्दा रखने के लिए सराहनीय फैसला सुनाया है। अब बॉल खिलाडियों , कोचों और फुटबाल प्रेमियों के कोर्ट में है। यही मौका है जागें और देश में फुटबाल को फिर से ज़िंदा करने के लिए तमाम राज्य इकाइयों और सोये हुए अधिकारीयों को भी जगाएं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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