भारतीय खेल आका, खेल प्राधिकरण, खेल संघ, सरकार का खेल मंत्रालय और तमाम खेल प्रमोटर वर्षों से भारत को खेल महाशक्ति बनाने का दावा करते आ रहे हैं लेकिन चंद खेलों को छोड़ बाकी में हमारे पास ओलम्पिक और विश्व खिताब जीतने वाले खिलाड़ियों को उंगलियों पर गिना जा सकता है।
बेशक, साधन सुविधाओं की कमी और अच्छे प्रशिक्षकों का अभाव बड़ी समस्या है। लेकिन देर से ही सही अब स्वीकारा जा रहा है कि उम्र की धोखाधड़ी के चलते तमाम भारतीय खेलों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा। खेल विशेषज्ञों और जानकारों को लगता है कि तमाम खेलों में एज फ्रॉड कम होने की बजाय बढ़ रहा है। वरना क्या कारण है कि बेहतर और विश्व स्तरीय मिलने के बाद भी हमारे खिलाड़ी उपलब्धियां हासिल करने से चूक रहे हैं।
देश के सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट का आलम यह है कि क्रिकेट बोर्ड की पैनी नजर के बावजूद बहुत से बड़ी उम्र खिलाड़ी विभिन्न राज्यों के लिए आयु वर्ग के टूर्नामेंट खेल जाते हैं और जल्दी ही गायब भी हो जाते हैं। आमतौर पर यह कहा जाता है कि जब से क्रिकेट सिखाने के लिए एकेडमियों का जाल बिछा है, उम्र का फर्जीवाड़ा बढ़ा है। हाल ही में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, यूपी, ओडिशा, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों की क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा की गई जांच-पड़ताल में पता चला है कि वर्षों से बड़ी उम्र के खिलाड़ी उभरती प्रतिभाओं की राह रोके हुए हैं।
लेकिन ऐसा सिर्फ क्रिकेट में नहीं है। फुटबॉल, हॉकी, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, एथलेटिक्स, तैराकी और लगभग सभी खेलों में बड़ी उम्र के खिलाड़ी उभरती प्रतिभाओं को मैदान छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं। सुब्रतो मुखर्जी कप फुटबॉल टूर्नामेंट, नेहरू हॉकी और आयु वर्ग के कई आयोजनों में ढेरों बड़ी उम्र के खिलाड़ी पकड़े जाते हैं। लेकिन यह पकड़-धकड़ महज दिखावा है। दोषी सिर्फ खिलाड़ी, उसके अभिभावक, कोच ही नहीं है। पदक, मान-सम्मान और जीत के भूखे खेल संघ लगातार बड़ी उम्र के खिलाड़ियों को बढ़ावा देते आ रहे हैं।
देश के जाने-माने कोचों और खेल विशेषज्ञों की राय में जब से खेलों में पैसे और राजनीति का प्रवाह बढ़ा है, उम्र का धोखा बढ़ता जा रहा है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |