एक ज़माना था जब भारतीय खिलाडी साधनहीनता और उच्च स्तरीय तकनीक के आभाव में शेष विश्व से पीछे चल रहे थे । तब अक्सर कहा जाता था की हमारे पास अच्छे कोचों का अभाव है और खिलाडियों को विदेशों में सीखने पढ़ने के लिए नहीं भेजा जाता । लेकिन आज बहुत कुछ बदल चुका है भारतीय खिलाडियों को अत्यधुनिक सुविधाएं मिल रही हैं और उन पर सरकारें और औद्योगिक घराने लाखों करोडो लुटा रहे हैं फिर भी हमारे खिलाडी अन्य देशों की तुलना में बहुत पीछे चल रहे हैं ,ऐसा क्यों है ?
हाल के कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों पर सरसरी नज़र डालें तो एक ख़ास बात यह देखने में आई है कि हमारे खिलाडी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी देशों के खिलाडियों की तुलना में बहुत हलके पड़ते हैं । मसलन फीफा अंडर 17 वर्ल्ड कप में भाग लेने वाली महिला टीम और इसी वर्ग की पुरुष टीम के खिलाडियों को देखें तो भारतीय खिलाडी अपेक्षाकृत कद काठी में उनके सामने कहीं नहीं ठहरते और टीम खेलों में ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते । लेकिन यह शारीरिक बनावट कई तरह से भारतीय खेलों के पतन का कारण भी रही है ।
भारतीय खेलों और खिलाडियों के बारे में पर्याप्त जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार कई छोटे कद और बड़ी उम्र के खिलाडी छोटे आयुवर्ग के घरेलू आयोजनों में धमाचौकड़ी मचाते देखे जा सकते हैं। सालों साल उनकी उम्र और शरीर स्थिर हो जाते ओOहै। अपने से कहीं छोटे खिलाडियों के बीच खेलने और धाक जमाने में उन्हें मज़ा आता है । हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, बास्केट बॉल , वॉलीबॉल, और तमाम खेलों में उनका सिक्का चलता है । उनसे कहीं ज्यादा प्रतिभाववान खिलाडी इसलिए आगे नहीं बढ़ पाते क्योंकि वे वास्तविक आयुवर्ग में खेलते हैं और जालसाज कोचों, अभिभावकों और अधिकारीयों के बने जाल में फंस जाते हैं ।
देश के एक जानेमाने फुटबाल आयोजन सुब्रतो कप और नेहरू हॉकी में भाग लेने वाली टीमों में से अधिकांश के खिलाडी निर्धारित आयुसीमा से बड़ी उम्र के होते हैं। ज्यादातर वही टीमें चैम्पियन बनती हैं जिनके खिलाडी खेल कौशल के साथ साथ उम्र की धोखा धड़ी में भी अव्वल होते हैं । नार्थ ईस्ट के अधिकांश प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, बंगाल, बिहार, यूपी, झारखंड, छतीशगढ, महाराष्ट्र और कई अन्य प्रदेशों के खिलाड़ी जब तब पकड़ में आते रहे हैं ।
ऐसा नहीं है कि छोटे आयुवर्गों में चल रहे गड़बड़ झाले से सरकारें, खेल मंत्रालय , आइओ ए , खेल संघ और अन्य इकाइयां अनभिज्ञ हों । उन्हें सब पता है लेकिन झूठा मान सम्मान पाने के लिए बड़े से बड़े अपराध माफ़ कर दिए जाते हैं और नुक्सान उठाना पड़ता है असल उम्र के खिलाडियों को जोकि बड़ी उम्र वालों के पांव तले कुचल दिए जाते हैं । ज्यादातर आयुवर्गों में दो तीन साल बड़े खिलाड़ी सरेआम खेल रहे हैं । यही खिलाड़ी जब अंडर 17 या अंडर 19 वर्गों में देश के लिए खेलते हैं तो समृद्ध और उन्नत देशों के दमदार खिलाड़ी उन्हें कुचल डालते हैं , जैसा कि फुटबाल में हो रहा है या हॉकी, हैंडबाल और बास्केटबाल में होता आया है ।
यह सही है कि असल उम्र का पता आधारकार्ड , डाक्टर और वैज्ञानिक जांच से चल सकता है लेकिन ये सब प्रमाण भारतीय बेईमानों के आगे फेल हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |