यह जरूरी नहीं कि कोई चैंपियन खिलाड़ी ही एक सफल कोच या कामयाब प्रशासक हो सकता है। भारतीय खेल इतिहास पर सरसरी नजर डालें तो एक ऐसा चैंपियन हुआ है जोकि न सिर्फ अच्छा गुरु बना अपितु खेल अधिकारी के रूप में भी उसने खूब नाम सम्मान कमाया है।
कुछ महान गुरुओं की बात करें तो गुरु हनुमान, नांबियार, ओपी भारद्वाज, रहीम, बलदेव सिंह जैसे नाम वर्षों से बड़े सम्मान के साथ लिए जाते रहे हैं। लेकिन एक नाम ऐसा है जोकि सफल कोच और प्रशासक के रूप में भी जाना पहचाना जाता है। बेशक, यह नाम है ‘ महाबली सतपाल’ , जोकि भारतीय कुश्ती में एक बड़ा हस्ताक्षर माना गया। एक प्रशासक के रूप में भी उनका योगदान बढ़ चढ़ कर रहा है।
सतपाल न सिर्फ एक श्रेष्ठ पहलवान रहे अपितु खेल प्रशासन को चलाने का हुनर शायद उनसे बेहतर किसी के भी पास नहीं रहा। उस समय जबकि भारतीय कुश्ती अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही थी और बिड़ला व्यायामशाला के पहलवान अपना कद बढ़ा रहे थे , सुदेश, प्रेमनाथ, करतार, जगमिंदर और दर्जनों अन्य नामों के बीच सतपाल का उदय हुआ और गुरु श्रेष्ठ गुरु हनुमान का अखाड़ा भारतीय कुश्ती जगत की शान बन गया।
एक पहलवान के रूप में सतपाल ने खूब नाम, दाम और सम्मान कमाया। उन्हें गुरु जी का प्रिय पहलवान माना गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके बेटों राजीव और संजय गांधी की विशेष कृपा के चलते सतपाल दिल्ली सरकार के खेल विभाग में उच्च पद पर काबीज हुए, जिसके वह सही हकदार थे। दिल्ली एशियाड के स्वर्ण पदक विजेता ओलंपियन पहलवान के पद ग्रहण के साथ ही दिल्ली के खेलों का भाग्योदम शुरू हुआ और देश की राजधानी स्कूली खेलों की खेल राजधानी में तब्दील हो गई। सतपाल की देखरेख में चल रहे छत्रसाल अखाड़े ने कई ओलंपिक पदक विजेता और द्रोणाचार्य कोच पैदा किए लेकिन अब सतपाल नहीं तो कुछ भी नहीं ।
सतपाल के उच्च पद पर रहते दिल्ली के स्कूलों ने लगभग सभी खेलों में अपना आधिपत्य कायम किया। शायद ही कोई खेल बचा रह गया होगा जिसमें दिल्ली के खिलाड़ियों की तूती न बोली हो। पुरस्कार स्वरूप उन्हें स्कूल गेम्स फेडरेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया। सतपाल जब तक दिल्ली सरकार में शीर्ष पद पर रहे और एसजीएफआई की बागडोर जब तक उनके हाथों में रही। खिलाड़ियों को हर प्रकार की सुविधाएं मिलीं लेकिन आज एसजीएफआइ एक गुमनाम और बदनाम संस्था बन कर रह गई है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |