देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, जिसमें खेलों को भी बढ़ चढ़ कर शामिल किया गया है । बेशक ऐसा होना भी चाहिए । आखिर खेलों की कामयाबी से भी देश की शान बढ़ती है और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खेल प्रतिभाओं को पहचान मिलती है । लेकिन जब पिछले सालों की उपलब्धि पर नजर डालते हैं तो बहुत अधिक खुश होने और इतराने जैसा कुछ ख़ास नहीं हुआ ।
यह न भूलें कि आज़ाद होने से पहले ही हम हॉकी के बेताज बादशाह बन चुके थे और आज़ाद होने के चंद साल बाद ही हमारी हॉकी की बादशात जाती रही । यह सही है कि विभाजन के बाद खिलाडी और खेल कौशल भी बंट गया लेकिन आज न तो भारत शीर्ष पर है और पकिस्तान की हालत तो और भी बुरी है । 75 सालों में यदि किसी खेल में भारतीय खिलाडियों ने उल्लेखनीय प्रगति की है उनमें कुश्ती, बैडमिंटन , वेटलिफ्टिंग, मुक्केबाजी और निशानेबाजी का उल्लेख किया जा सकता है । लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रियता अर्जित करने वाला, देश को मान सम्मान दिलाने वाला और अपने दम पर हुंकार भरने वाला खेल क्रिकेट ही है , जिसने सरकारी सहायता मिले बिना ही अपना लम्बा चौड़ा साम्राज्य खड़ा किया है ।
ओलम्पिक, विश्व चैम्पियनशिप , एशियाड और कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय खिलाडियों के प्रदर्शन पर सरसरी नजर डालें तो आज़ादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने कोई बड़ा तीर नहीं चलाया है । और हाँ, हाल ही में संपन्न हुए कॉमनवेल्थ खेलों की पदक तालिका पर इतराने वाले सरकारी तंत्र, और खेल संघों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अपनी मेजबानी में आयोजित 2010 के खेलों में हमने सौ से ऊपर का आंकड़ा छुआ था | भले ही तब निशानेबाजी में अच्छे खासे पदक जीते गए थे । वही निशानेबाजी जिसमें पिछले दो ओलम्पिक से खाली हाथ लौट रहे हैं ।
एथलेटिक में 73 साल बाद स्वर्ण जीतना सुकून देने वाला रहा , जिसके लिए एथलेटिक फेडरेशन और नीरज चोपड़ा साधुवाद के पात्र हैं । एथलीटों ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में भी धमाकेदार प्रदर्शन किया । लगता है इस खेल में देश के अच्छे दिन आ रहे हैं । लेकिन उन एथलीटों को क्यों सर चढ़ाया जा रहा है जोकि विदेशों में गली कूचे के आयोजनों में रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन कर देशवासियों को झूठी उम्मीद जगाते हैं और खराब प्रदर्शन पर बहाने बनाते हैं । कुछ पहलवान, मुक्केबाज, निशानेबाज और जिम्नास्ट भी देशवासियों की भावनाओं से खेलते आ रहे हैं ।
दुनियाभर में ऐसे बहुत से देश हैं जिन्होंने आजादी मिलने के पांच दस सालों में ही ओलम्पिक पदक तालिका में उच्च स्थान बनाया लेकिन भारत के नाम अब तक मात्र दो व्यक्तिगत स्वर्ण हैं , जोकि अभिनव बिंद्रा ने निशाना लगा कर और नीरज ने भाले की नोक पर जीते हैं । हॉकी में आठ स्वर्ण और पहलवान सुशील कुमार एवं बैडमिंटन खिलाडी पीवी सिंधु ने दो दो ओलम्पिक पदक जीत कर भारतीय प्रयासों की लाज बचाई है ।
भारत ने दो एशियाई खेल , एक कॉमनवेल्थ खेल और अनेकों विश्व स्तरीय आयोजन कर देश को अंतर्राष्ट्रीय खेल मंच पर स्थापित किया है । खेलों पर सरकार करोड़ों खर्च कर रही है, अपने खिलाडियों को विदेश दौरे कराए जा रहे हैं और विदेशी कोचों की सेवाएं ली जा रही हैं लेकिन प्रगति की रफ़्तार कछुए जैसी है । और हाँ , जो अवसरवादी कॉमनवेल्थ की कामयाबी को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हैं , उन पर कदापि भरोसा न करें क्योंकि ये खेल अव्वल दर्जे के नहीं हैं। असली तस्वीर देखनी है तो दो साल इंतजार करें , जोकि पेरिस ओलम्पिक दिखाएगा ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |