यादगार साल , 2021 के खलनायक भी कम नहीं!

2021 best so far some spoils the show

टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय खिलाडियों का प्रदर्शन भारतीय खेल इतिहास की सबसे बड़ी और यादगार उपलब्धि कही जा सकती है। सामान्य खिलाडियों की तरह दिव्यांग खिलाडियों ने भी अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। बल्कि कहा यह जाना चाहिए कि उन्होंने बेहतर किया और खूब नाम सम्मान कमाया। लेकिन यह भी सच है कि भारत यदि टोक्यो से कुछ खास लेकर आया है तो उसका श्रेय निसंदेह जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा को जाता है । वरना छह पदक तो लन्दन ओलम्पिक में भी जीते थे।

नीरज ने न सिर्फ भारतीय एथलेटिक इतिहास में सुनहरा पन्ना जोड़ा, वर्ष 2021 को अपने नाम भी किया। अन्य पदक विजेता खिलाडियों ने भी अपने अपने खेल का गौरव बढ़ाया। लेकिन बहुत से ऐसे खेल और खिलाडी हैं जिनके प्रदर्शन से देश को शर्मसार होना पड़ा। साल के अंत में देश की खेल उपलब्धियों को याद करने कि परम्परा सी है लेकिन विफल रहे खेलों को याद करना भी जरुरी है ताकि उन्हें बेहतर करने के लिए प्रेरित किया जा सके ।

हॉकी नहीं सुधरेगी:
टोक्यो ओलम्पिक के पहले ही मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के हाथों शर्मनाक हार के बाद भारतीय पुरुष टीम ने वापसी कर कांस्य पदक जीता और वाह वाह लूटी लेकिन वही टीम अब अपने पुरानी चाल चलने लगी है जोकि शुभ संकेत नहीं है। अपने घर पर जूनियर वर्ल्ड कप में दो बार फ़्रांस के हाथों हुई हार इसलिए भी शर्मनाक कही जा सकती है क्योंकि फ़्रांस हॉकी में कोई बड़ी ताकत नहीं है। दूसरा आघात तब लगा जब एशियाई चैम्पियंस ट्राफी में हमारी सीनियर टीम को जापान ने पीट दिया। कोरिया और जापान के बाद भारत को तीसरा स्थान ही मिल पाया। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि भारतीय हॉकी की वापसी की उम्मीद व्यर्थ है।

निशानेबाजी में बवाल:
भारतीय निशानेबाजों ने भले ही बेमतलब के आयोजनों में पदक जीते लेकिन टोक्यो ओलम्पिक ने उन्हें पूरी तरह एक्सपोज कर दिया। अंदर खाते निशानेबाजी में ऐसा बहुत कुछ चल रहा है जिसे लेकर खिलाडी, कोच और अधिकारियों की करतूतें शर्मसार करने वाली रही हैं। इन निशांचियों पर करोड़ों खर्च किए गए लेकिन ओलम्पिक से ख़ाली हाथ लौटने का सिलसिला बना हुआ है।

तीर जिगर के पार:
निशानेबाजी की तरह तीरंदाजी में भी लगातार खाली हाथ लौटने कि परम्परा बनी हुई है। यहाँ भी खिलाडियों को सर चढाने और उन पर करोड़ों खर्च करने की परम्परा का निर्वाह पूरी निष्ठां के साथ किया जा रहा है। हैरानी वाली बात यह है कि निशानेबाजों की तरह तीरंदाजों से भी खराब प्रदर्शन के बारे में कोई सवाल कभी नहीं किया जाता। भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल मंत्रालय सम्बंधित खेल संघों के सामने डरे-मरे से नजर आते हैं।

महिला पहलवान चारों खाने चित्त:
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय कुश्ती के कारण देश के खेलों की लाज बची है लेकिन साक्षी मालिक के बाद कौन, यह सवाल जस का तस खड़ा है। कुछ लड़कियों ने विश्व स्तरीय आयोजनों में भले ही शानदार प्रदर्शन किया लेकिन ओलम्पिक में उनके प्रदर्शन और अनुशासन पर सवाल खड़े हुए। खासकर विनेश फोगाट जैसी नामी पहलवान का फ्लॉप शो कुश्ती प्रेमियों को रास नहीं आया।

आत्मघाती मुक्के:
मुक्केबाजी में मैरीकॉम ने फिर निराश किया और अपने प्रदर्शन से यह दिखा दिया कि उम्र हमारी श्रेष्ठ मुक्केबाज पर हावी है और उसे रिंग से विदा ले लेनी चाहिए। लवलीना ने ओलम्पिक में लाज रख ली वरना पुरुष मुक्केबाजों ने तो देश का नाम डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। निशानेबाजी और तीरंदाजी की तरह मुक्केबाजी के कर्णधारों को भी आड़े हाथों लेने कि जरुरत है।

फुटबाल की हवा फुस्स:
” सुनील क्षेत्री ने मेस्सी का रिकार्ड तोडा”, जैसे गीत गाने से भारतीय फुटबाल का भला नहीं होने वाला। जो देश एशियाड में नहीं खेल पाता, जिसके लिए सैफ स्तर की फिसड्डी चैम्पियनशिप ही बड़ी उपलब्धि हो उसका फुटबाल भविष्य और अंधकारमय हो गया है। फिरभी ओलम्पिक और विश्व कप खेलने का सपना देखने में कोई बुराई नहीं है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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