भारतीय हॉकी टीम पेरिस ओलंपिक से गोल्ड मेडल जीत लाने के लिए दृढ़ संकल्प है। समय समय पर कई सीनियर खिलाड़ी और कोच अपने साक्षात्कार में यह दावा कर चुके हैं। इसमें दो राय नहीं कि भारतीय प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में शानदार रहा है लेकिन गोल्ड जीतने का दावा इसलिए गारंटी नहीं माना जा सकता क्योंकि पहले भी हमारे खिलाड़ी कई बार ऐसे दावे करते आ रहे हैं और हर बार नाकाम रहते हैं।
कुछ खिलाड़ी और कोच इसलिए आशान्वित हैं क्योंकि टोक्यो ओलंपिक में भारत ने सालों बाद ओलंपिक पदक के दर्शन किए थे। तत्पश्चात हमारे खिलाड़ियों ने कई बार बेहतर करने के संकेत दिए हैं। हालांकि भारत ने आठ बार ओलंपिक गोल्ड जीते हैं और पिछला श्रेष्ठ प्रदर्शन 1980 के मास्को ओलंपिक में किया था। लेकिन मास्को में ज्यादातर प्रमुख हॉकी राष्ट्रों ने भाग नहीं लिया था। चूंकि पहले पांच देश शामिल नहीं हुए इसलिए भारत का काम आसान हो गया था।
ओलंपिक गोल्ड जीते 43 साल हो गए हैं। इस बीच ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी गाजे बाजे के साथ जाते रहे , ओलंपिक जीतने के नारे लगाए गए पर कामयाबी नहीं मिल पाई। जहां तक पिछले कुछ सालों की बात है तो भारतीय प्रदर्शन सुधरा है, विदेशी कोच खिलाड़ियों को सिखा पढ़ा रहे हैं। खिलाड़ियों के लंबे ट्रेनिंग कैंप लग रहे हैं और उन पर लाखों करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे में पदक की उम्मीद करना गलत भी नहीं है।
जहां तक भारतीय खिलाड़ियों को मिलने वाली चुनौती की बात है तो आस्ट्रेलिया, हालैंड और जर्मनी पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं। पिछले कुछ वर्षों में अर्जेंटीना , बेल्जियम जैसे देश आगे बढ़े है। स्पेन, न्यूजीलैंड , इंग्लैंड आदि को भी कमजोर नहीं आंका जा सकता। यह सही है कि हमारे परंपरा प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान की हालत बहुत अच्छी नहीं है लेकिन उसे वापसी करने में ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला। अन्य एशियाई देशों में जापान, कोरिया, चीन , मलेशिया आदि भारत के लिए बड़ी चुनौती नहीं होने चाहिए लेकिन खेल में कभी भी कुछ भी हो सकता है।
भारतीय हॉकी टीम का एक बड़ा कमजोर पहलू यह रहा है कि भारतीय खिलाड़ी, कोच, टीम प्रबंधन और तमाम मशीनरी किसी भी ओलंपिक से पहले टीम के स्तुतिगान में पूरी ताकत झोंक देते हैं। दूसरे, हमारी टीम पूरे दमखम के साथ दोस्ताना और अन्य मुकाबलों में उतरती है । दूसरी तरफ अन्य देश आखिर तक प्रयोग करते हैं और अपनी असल ताकत को छिपा कर रखते हैं। चूंकि हमारे खिलाड़ी पहले ही एक्सपोज हो जाते हैं, इसलिए विपक्षियों को कमजोर नब्ज पकड़ने का मौका मिल जाता है। उम्मीद है पेरिस ओलंपिक में उतरने से पहले यह गलती दोहराई नहीं जाएगी।